Home / Articles / Search / Balkand
Showing 363 Search Results for : Balkand

बालकाण्ड शुरुआत श्लोक

Filed under: Balkand
श्रीगणेशायनमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानसप्रथम  सोपानश्री बालकाण्डश्लोक :वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥भावार्थ:- अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों क  ......

बालकाण्ड शुरुआत सोरठा

Filed under: Balkand
सोरठा :जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥भावार्थ:- जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श  ......

बालकाण्ड दोहा 01

Filed under: Balkand
चौपाई :बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥ भावार्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है  ......

बालकाण्ड दोहा 02

Filed under: Balkand
चौपाई :गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1॥ भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अं  ......

बालकाण्ड दोहा 03

Filed under: Balkand
चौपाई :मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला॥सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई॥1॥ भावार्थ:- इस तीर्थराज में स्नान का फल तत्काल ऐसा देखने में आता है कि कौए कोयल बन जाते हैं और बगुले हंस। यह सुनकर कोई आश्चर्य न कर  ......

बालकाण्ड दोहा 04

Filed under: Balkand
चौपाई :बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥1॥ भावार्थ:- अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ, जो बिना ही प्रयोजन, अपना हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण क  ......

बालकाण्ड दोहा 05

Filed under: Balkand
चौपाई :मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा॥बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा॥1॥ भावार्थ:- मैंने अपनी ओर से विनती की है, परन्तु वे अपनी ओर से कभी नहीं चूकेंगे। कौओं को बड़े प्रेम से पालिए, परन्तु   ......

बालकाण्ड दोहा 06

Filed under: Balkand
चौपाई :खल अघ अगुन साधु गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने॥1॥ भावार्थ:- दुष्टों के पापों और अवगुणों की और साधुओं के गुणों की कथाएँ- दोनों ही अपार और अथाह समुद्र हैं। इसी से कुछ गुण औ  ......

बालकाण्ड दोहा 07

Filed under: Balkand
चौपाई :अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥1॥ भावार्थ:- विधाता जब इस प्रकार का (हंस का सा) विवेक देते हैं, तब दोषों को छोड़कर मन गुणों में अनुरक्त होता है। काल स्वभाव और   ......

बालकाण्ड दोहा 08

Filed under: Balkand
चौपाई :आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥ भावार्थ:- चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सबसे भरे हुए   ......

बालकाण्ड दोहा 09

Filed under: Balkand
चौपाई :खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा॥हंसहि बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही॥1॥ भावार्थ:- किन्तु दुष्टों के हँसने से मेरा हित ही होगा। मधुर कण्ठ वाली कोयल को कौए तो कठोर ही कहा करते हैं। जैसे बगुले हंस को औ  ......

बालकाण्ड दोहा 10

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥ भावार्थ:- इसमें श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, कल्याण का भवन है और अमंगलों को हर  ......

बालकाण्ड दोहा 11

Filed under: Balkand
चौपाई :मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥1॥ भावार्थ:- मणि, माणिक और मोती की जैसी सुंदर छबि है, वह साँप, पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी शोभा नहीं पाती। राजा के मुकुट और   ......

बालकाण्ड दोहा 12

Filed under: Balkand
चौपाई :जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला॥चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़े॥1॥ भावार्थ:- जो कराल कलियुग में जन्मे हैं, जिनकी करनी कौए के समान है और वेष हंस का सा है, जो वेदमार्ग को छोड़कर कुमार्ग पर चलते हैं, जो क  ......

बालकाण्ड दोहा 13

Filed under: Balkand
चौपाई :सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥ भावार्थ:- यद्यपि प्रभु श्री रामचन्द्रजी की प्रभुता को सब ऐसी (अकथनीय) ही जानते हैं, तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा। इसमें वे  ......

बालकाण्ड दोहा 14

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई॥ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥1॥ भावार्थ:- इस प्रकार मन को बल दिखलाकर मैं श्री रघुनाथजी की सुहावनी कथा की रचना करूँगा। व्यास आदि जो अनेकों श्रेष्ठ कवि  ......

बालकाण्ड दोहा 15

Filed under: Balkand
चौपाई :पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥1॥ भावार्थ:- फिर मैं सरस्वती और देवनदी गंगाजी की वंदना करता हूँ। दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं। एक (गंगाजी) स्नान करने और   ......

बालकाण्ड दोहा 16

Filed under: Balkand
चौपाई :बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥1॥ भावार्थ:- मैं अति पवित्र श्री अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्री सरयू नदी की वन्दना करता हूँ। फ  ......

बालकाण्ड दोहा 17

Filed under: Balkand
चौपाई :प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू॥जोग भोग महँ राखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई॥1॥ भावार्थ:- मैं परिवार सहित राजा जनकजी को प्रणाम करता हूँ, जिनका श्री रामजी के चरणों में गूढ़ प्रेम था, जिसको उन्होंने योग और भ  ......

बालकाण्ड दोहा 18

Filed under: Balkand
चौपाई :कपिपति रीछ निसाचर राजा। अंगदादि जे कीस समाजा॥बंदउँ सब के चरन सुहाए। अधम सरीर राम जिन्ह पाए॥1॥ भावार्थ:- वानरों के राजा सुग्रीवजी, रीछों के राजा जाम्बवानजी, राक्षसों के राजा विभीषणजी और अंगदजी आदि जितना वानरों का समाज है, सब  ......

बालकाण्ड दोहा 19

Filed under: Balkand
चौपाई :बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥ भावार्थ:- मैं श्री रघुनाथजी के नाम ‘राम’ की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्  ......

बालकाण्ड दोहा 20

Filed under: Balkand
चौपाई :आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥1॥ भावार्थ:- दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं, जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और   ......

बालकाण्ड दोहा 21

Filed under: Balkand
चौपाई :समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥1॥भावार्थ:- समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं, किन्तु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है (अर्थात्‌ नाम और न  ......

बालकांड दोहा 22

Filed under: Balkand
चौपाई :नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा॥1॥भावार्थ:- ब्रह्मा के बनाए हुए इस प्रपंच (दृश्य जगत) से भलीभाँति छूटे हुए वैराग्यवान्‌ मुक्त योगी पुरुष इस नाम को ही ज  ......

बालकांड दोहा 23

Filed under: Balkand
चौपाई :अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा॥मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें॥1॥भावार्थ:- निर्गुण और सगुण ब्रह्म के दो स्वरूप हैं। ये दोनों ही अकथनीय, अथाह, अनादि और अनुपम हैं। मेरी सम्मति में ना  ......

बालकांड दोहा 24

Filed under: Balkand
चौपाई :राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी ने भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके स्वयं कष्ट सहकर साधुओं को सुखी किया, परन्तु भक्तगण  ......

बालकांड दोहा 25

Filed under: Balkand
चौपाई :राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ ॥नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥1॥भावार्थ:- श्री रामजी ने सुग्रीव और विभीषण दोनों को ही अपनी शरण में रखा, यह सब कोई जानते हैं, परन्तु नाम ने अनेक गरीबों पर कृपा की है। न  ......

बालकांड दोहा 26

Filed under: Balkand
चौपाई :नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥भावार्थ:- नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेष वाले होने पर भी मंगल की राशि हैं। शुकदेवजी और सनकादि सिद्ध,   ......

बालकांड दोहा 27

Filed under: Balkand
चौपाई :चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥1॥भावार्थ:- (केवल कलियुग की ही बात नहीं है,) चारों युगों में, तीनों काल में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोकरहित हुए हैं। वेद,  ......

बालकांड दोहा 28

Filed under: Balkand
चौपाई :भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥1॥॥भावार्थ:- अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होत  ......

बालकांड दोहा 29

Filed under: Balkand
चौपाई :अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥1॥भावार्थ:- यह मेरी बहुत बड़ी ढिठाई और दोष है, मेरे पाप को सुनकर नरक ने भी नाक सिकोड़ ली है (अर्थात नरक में भी मेरे लिए  ......

बालकांड दोहा 30

Filed under: Balkand
चौपाई :जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥1॥भावार्थ:- मुनि याज्ञवल्क्यजी ने जो सुहावनी कथा मुनिश्रेष्ठ भरद्वाजजी को सुनाई थी, उसी संवाद को मैं बखानकर कहूँगा, सब सज्ज  ......

बालकांड दोहा 31

Filed under: Balkand
चौपाई :तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥1॥भावार्थ:- तो भी गुरुजी ने जब बार-बार कथा कही, तब बुद्धि के अनुसार कुछ समझ में आई। वही अब मेरे द्वारा भाषा में रची जाएगी, जि  ......

बालकांड दोहा 32

Filed under: Balkand
चौपाई :रामचरित चिंतामति चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी का चरित्र सुंदर चिन्तामणि है और संतों की सुबुद्धि रूपी स्त्री का सुंदर श्रंगार है। श्री रा  ......

बालकांड दोहा 33

Filed under: Balkand
चौपाई :कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥1॥भावार्थ:- जिस प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्री शिवजी ने विस्तार से उसका उत्  ......

बालकांड दोहा 34

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि सब संसय करि दूरी। सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी। करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥1॥भावार्थ:- इस प्रकार सब संदेहों को दूर करके और श्री गुरुजी के चरणकमलों की रज को सिर पर धारण करके मैं पुनः हाथ जोड़कर सबकी व  ......

बालकांड दोहा 35

Filed under: Balkand
चौपाई : दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारदा बिमल मति॥1॥भावार्थ:- वेद-पुराण कहते हैं कि श्री सरयूजी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी म  ......

बालकांड दोहा 36

Filed under: Balkand
चौपाई :संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥1॥भावार्थ:- श्री शिवजी की कृपा से उसके हृदय में सुंदर बुद्धि का विकास हुआ, जिससे यह तुलसीदास श्री रामचरित मानस का कवि   ......

बालकांड दोहा 37

Filed under: Balkand
चौपाई :सप्त प्रबंध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥1॥भावार्थ:- सात काण्ड ही इस मानस सरोवर की सुंदर सात सीढ़ियाँ हैं, जिनको ज्ञान रूपी नेत्रों से देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है।   ......

बालकांड दोहा 38

Filed under: Balkand
चौपाई :जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥1॥भावार्थ:- जो लोग इस चरित्र को सावधानी से गाते हैं, वे ही इस तालाब के चतुर रखवाले हैं और जो स्त्री-पुरुष सदा आदरपूर्वक इसे सुन  ......

बालकांड दोहा 39

Filed under: Balkand
चौपाई :जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नीद जुड़ाई होई॥जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥1॥भावार्थ:- यदि कोई मनुष्य कष्ट उठाकर वहाँ तक पहुँच भी जाए, तो वहाँ जाते ही उसे नींद रूपी ज़ूडी आ जाती है। हृदय में मूर्खता रूप  ......

बालकांड दोहा 40

Filed under: Balkand
चौपाई :रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥1॥भावार्थ:- सुंदर कीर्ति रूपी सुहावनी सरयूजी रामभक्ति रूपी गंगाजी में जा मिलीं। छोटे भाई लक्ष्मण सहित श्री रामजी के युद्ध का  ......

बालकांड दोहा 41

Filed under: Balkand
चौपाई :सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥1॥भावार्थ:- श्री सीताजी के स्वयंवर की जो सुन्दर कथा है, वह इस नदी में सुहावनी छबि छा रही है। अनेकों सुंदर विचारपूर्ण प्रश्न ही इ  ......

बालकांड दोहा 42

Filed under: Balkand
चौपाई :कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी॥हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥1॥भावार्थ:- यह कीर्तिरूपिणी नदी छहों ऋतुओं में सुंदर है। सभी समय यह परम सुहावनी और अत्यंत पवित्र है। इसमें शिव-पार्व  ......

बालकांड दोहा 43

Filed under: Balkand
चौपाई :आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी॥अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी॥1॥भावार्थ:- मेरा आर्तभाव, विनय और दीनता इस सुंदर और निर्मल जल का कम हलकापन नहीं है (अर्थात्‌ अत्यंत हलकापन है)। यह जल बड़ा ही अनोखा है  ......

बालकांड दोहा 44

Filed under: Balkand
चौपाई :भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥1॥भावार्थ:- भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं, उनका श्री रामजी के चरणों में अत्यंत प्रेम है। वे तपस्वी, निगृहीत चित्त, जितेन  ......

बालकांड दोहा 45

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥1॥भावार्थ:- इसी प्रकार माघ के महीनेभर स्नान करते हैं और फिर सब अपने-अपने आश्रमों को चले जाते हैं। हर साल वहाँ इसी त  ......

बालकांड दोहा 46

Filed under: Balkand
चौपाई :अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥1॥भावार्थ:- यही सोचकर मैं अपना अज्ञान प्रकट करता हूँ। हे नाथ! सेवक पर कृपा करके इस अज्ञान का नाश कीजिए। संतों, पुराणों और उपनि  ......

बालकांड दोहा 47

Filed under: Balkand
चौपाई:जैसें मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥1॥भावार्थ:- हे नाथ! जिस प्रकार से मेरा यह भारी भ्रम मिट जाए, आप वही कथा विस्तारपूर्वक कहिए। इस पर याज्ञवल्क्यजी मुस्कु  ......

बालकांड दोहा 48

Filed under: Balkand
चौपाई :एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥1॥भावार्थ:- एक बार त्रेता युग में शिवजी अगस्त्य ऋषि के पास गए। उनके साथ जगज्जननी भवानी सतीजी भी थीं। ऋषि ने संपूर्ण जगत्‌ के ई  ......

बालकांड दोहा 49

Filed under: Balkand
चौपाई :रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा॥जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा॥1॥भावार्थ:- रावण ने (ब्रह्माजी से) अपनी मृत्यु मनुष्य के हाथ से माँगी थी। ब्रह्माजी के वचनों को प्रभु सत्य करना चाहते हैं  ......

बालकांड दोहा 50

Filed under: Balkand
चौपाई :संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा ॥भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी॥1॥भावार्थ:- श्री शिवजी ने उसी अवसर पर श्री रामजी को देखा और उनके हृदय में बहुत भारी आनंद उत्पन्न हुआ। उन शोभा के सम  ......

बालकांड दोहा 51

Filed under: Balkand
चौपाई :बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥1॥भावार्थ:- देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करने वाले जो विष्णु भगवान्‌ हैं, वे भी शिवजी की ही भाँति सर्वज्ञ   ......

बालकांड दोहा 52

Filed under: Balkand
चौपाई :जौं तुम्हरें मन अति संदेहू। तौ किन जाइ परीछा लेहू॥तब लगि बैठ अहउँ बटछाहीं। जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाहीं॥1॥भावार्थ:- जो तुम्हारे मन में बहुत संदेह है तो तुम जाकर परीक्षा क्यों नहीं लेती? जब तक तुम मेरे पास लौट आओगी तब तक मैं इस  ......

बालकांड दोहा 53

Filed under: Balkand
चौपाई :लछिमन दीख उमाकृत बेषा। चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा॥कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा॥1॥भावार्थ:- सतीजी के बनावटी वेष को देखकर लक्ष्मणजी चकित हो गए और उनके हृदय में बड़ा भ्रम हो गया। वे बहुत गंभीर हो गए, कुछ कह  ......

बालकांड दोहा 54

Filed under: Balkand
चौपाई :मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना॥जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा॥1॥भावार्थ:- कि मैंने शंकरजी का कहना न माना और अपने अज्ञान का श्री रामचन्द्रजी पर आरोप किया। अब जाकर मैं शिवजी को क्या उत्तर दूँगी? (य  ......

बालकांड दोहा 55

Filed under: Balkand
चौपाई :देखे जहँ जहँ रघुपति जेते। सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते॥जीव चराचर जो संसारा। देखे सकल अनेक प्रकारा॥1॥भावार्थ:- सतीजी ने जहाँ-जहाँ जितने रघुनाथजी देखे, शक्तियों सहित वहाँ उतने ही सारे देवताओं को भी देखा। संसार में जो चराचर जीव   ......

बालकांड दोहा 56

Filed under: Balkand
चौपाई :सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ। भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ॥कछु न परीछा लीन्हि गोसाईं। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाईं॥1॥भावार्थ:- सतीजी ने श्री रघुनाथजी के प्रभाव को समझकर डर के मारे शिवजी से छिपाव किया और कहा- हे स्वामिन्‌! मैंने कु  ......

बालकांड दोहा 57

Filed under: Balkand
चौपाई :तब संकर प्रभु पद सिरु नावा। सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा॥एहिं तन सतिहि भेंट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥1॥भावार्थ:- तब शिवजी ने प्रभु श्री रामचन्द्रजी के चरण कमलों में सिर नवाया और श्री रामजी का स्मरण करते ही उनके मन   ......

बालकांड दोहा 58

Filed under: Balkand
चौपाई :हृदयँ सोचु समुझत निज करनी। चिंता अमित जाइ नहिं बरनी॥कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा॥1॥भावार्थ:- अपनी करनी को याद करके सतीजी के हृदय में इतना सोच है और इतनी अपार चिन्ता है कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। (उन  ......

बालकांड दोहा 59

Filed under: Balkand
चौपाई :नित नव सोचु सती उर भारा। कब जैहउँ दुख सागर पारा॥मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनि पतिबचनु मृषा करि जाना॥1॥भावार्थ:- सतीजी के हृदय में नित्य नया और भारी सोच हो रहा था कि मैं इस दुःख समुद्र के पार कब जाऊँगी। मैंने जो श्री रघुनाथ  ......

बालकांड दोहा 60

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी॥बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥1॥भावार्थ:- दक्षसुता सतीजी इस प्रकार बहुत दुःखित थीं, उनको इतना दारुण दुःख था कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। सत्तासी हजा  ......

बालकांड दोहा 61

Filed under: Balkand
चौपाई :किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा॥बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई॥1॥भावार्थ:- (दक्ष का निमन्त्रण पाकर) किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सब देवता अपनी-अपनी स्त्रियों सहित चले। विष्णु, ब्रह्मा औ  ......

बालकांड दोहा 62

Filed under: Balkand
चौपाई :कहेहु नीक मोरेहूँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा॥दच्छ सकल निज सुता बोलाईं। हमरें बयर तुम्हउ बिसराईं॥1॥भावार्थ:- शिवजी ने कहा- तुमने बात तो अच्छी कही, यह मेरे मन को भी पसंद आई पर उन्होंने न्योता नहीं भेजा, यह अनुचित है। दक  ......

बालकांड दोहा 63

Filed under: Balkand
चौपाई :पिता भवन जब गईं भवानी। दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी॥सादर भलेहिं मिली एक माता। भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता॥1॥भावार्थ:- भवानी जब पिता (दक्ष) के घर पहुँची, तब दक्ष के डर के मारे किसी ने उनकी आवभगत नहीं की, केवल एक माता भले ही आदर से मि  ......

बालकांड दोहा 64

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा॥सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ॥1॥भावार्थ:- हे सभासदों और सब मुनीश्वरो! सुनो। जिन लोगों ने यहाँ शिवजी की निंदा की या सुनी है, उन सबको उसका फल तुरंत ही मिले  ......

बालकांड दोहा 65

Filed under: Balkand
चौपाई :समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए॥जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा॥1॥भावार्थ:- ये सब समाचार शिवजी को मिले, तब उन्होंने क्रोध करके वीरभद्र को भेजा। उन्होंने वहाँ जाकर यज्ञ विध्वंस कर डाला औ  ......

बालकांड दोहा 66

Filed under: Balkand
चौपाई :सरिता सब पुनीत जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं॥सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा॥1॥भावार्थ:- सारी नदियों में पवित्र जल बहता है और पक्षी, पशु, भ्रमर सभी सुखी रहते हैं। सब जीवों ने अपना स्वाभाविक बैर छोड  ......

बालकांड दोहा 67

Filed under: Balkand
चौपाई :कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी। सुता तुम्हारि सकल गुन खानी॥सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी॥1॥भावार्थ:- नारद मुनि ने हँसकर रहस्ययुक्त कोमल वाणी से कहा- तुम्हारी कन्या सब गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुंदर, सुशी  ......

बालकांड दोहा 68

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी॥नारदहूँ यह भेदु न जाना। दसा एक समुझब बिलगाना॥1॥भावार्थ:- नारद मुनि की वाणी सुनकर और उसको हृदय में सत्य जानकर पति-पत्नी (हिमवान्‌ और मैना) को दुःख हुआ और पार्वतीजी प्रसन्  ......

बालकांड दोहा 69

Filed under: Balkand
चौपाई :तदपि एक मैं कहउँ उपाई। होइ करै जौं दैउ सहाई॥जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं। मिलिहि उमहि तस संसय नाहीं॥1॥भावार्थ:- तो भी एक उपाय मैं बताता हूँ। यदि दैव सहायता करें तो वह सिद्ध हो सकता है। उमा को वर तो निःसंदेह वैसा ही मिलेगा, जैस  ......

बालकांड दोहा 70

Filed under: Balkand
चौपाई :सुरसरि जल कृत बारुनि जाना। कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना॥सुरसरि मिलें सो पावन जैसें। ईस अनीसहि अंतरु तैसें॥1॥भावार्थ:- गंगा जल से भी बनाई हुई मदिरा को जानकर संत लोग कभी उसका पान नहीं करते। पर वही गंगाजी में मिल जाने पर जैसे पवि  ......

बालकांड दोहा 71

Filed under: Balkand
चौपाई :कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ। आगिल चरित सुनहु जस भयऊ॥पतिहि एकांत पाइ कह मैना। नाथ न मैं समुझे मुनि बैना॥1॥भावार्थ:- यों कहकर नारद मुनि ब्रह्मलोक को चले गए। अब आगे जो चरित्र हुआ उसे सुनो। पति को एकान्त में पाकर मैना ने कहा- हे नाथ!  ......

बालकांड दोहा 72

Filed under: Balkand
चौपाई :अब जौं तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावनु देहू॥करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटिहि कलेसू॥1॥भावार्थ:- अब यदि तुम्हें कन्या पर प्रेम है, तो जाकर उसे यह शिक्षा दो कि वह ऐसा तप करे, जिससे शिवजी मिल जाएँ। दूसरे उपा  ......

बालकांड दोहा 73

Filed under: Balkand
चौपाई :करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी॥मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा॥1॥भावार्थ:- हे पार्वती! नारदजी ने जो कहा है, उसे सत्य समझकर तू जाकर तप कर। फिर यह बात तेरे माता-पिता को भी अच्छी लगी है। तप स  ......

बालकांड दोहा 74

Filed under: Balkand
चौपाई :उर धरि उमा प्रानपति चरना। जाइ बिपिन लागीं तपु करना॥अति सुकुमार न तनु तप जोगू। पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू॥1॥भावार्थ:- प्राणपति (शिवजी) के चरणों को हृदय में धारण करके पार्वतीजी वन में जाकर तप करने लगीं। पार्वतीजी का अत्यन्त स  ......

बालकांड दोहा 75

Filed under: Balkand
चौपाई :अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भए अनेक धीर मुनि ग्यानी॥अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी। सत्य सदा संतत सुचि जानी॥1॥भावार्थ:- हे भवानी! धीर, मुनि और ज्ञानी बहुत हुए हैं, पर ऐसा (कठोर) तप किसी ने नहीं किया। अब तू इस श्रेष्ठ ब्रह्मा की वाणी क  ......

बालकांड दोहा 76

Filed under: Balkand
चौपाई :कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना॥1॥भावार्थ:- वे कहीं मुनियों को ज्ञान का उपदेश करते और कहीं श्री रामचन्द्रजी के गुणों का वर्णन करते थे। यद्यपि सुजा  ......

बालकांड दोहा 77

Filed under: Balkand
चौपाई :कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं॥सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा॥1॥भावार्थ:- शिवजी ने कहा- यद्यपि ऐसा उचित नहीं है, परन्तु स्वामी की बात भी मेटी नहीं जा सकती। हे नाथ! मेरा यही परम धर्म है कि   ......

बालकांड दोहा 78

Filed under: Balkand
चौपाई :रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमंत तपस्या जैसी॥बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी॥1॥भावार्थ:- ऋषियों ने (वहाँ जाकर) पार्वती को कैसी देखा, मानो मूर्तिमान्‌ तपस्या ही हो। मुनि बोले- हे शैलकुमारी! सुनो, तुम किस  ......

बालकांड दोहा 79

Filed under: Balkand
चौपाई :दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई॥चित्रकेतु कर घरु उन घाला। कनककसिपु कर पुनि अस हाला॥1॥भावार्थ:- उन्होंने जाकर दक्ष के पुत्रों को उपदेश दिया था, जिससे उन्होंने फिर लौटकर घर का मुँह भी नहीं देखा। चित्रके  ......

बालकांड दोहा 80

Filed under: Balkand
चौपाई :अजहूँ मानहु कहा हमारा। हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा॥अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला। गावहिं बेद जासु जस लीला॥1॥भावार्थ:- अब भी हमारा कहा मानो, हमने तुम्हारे लिए अच्छा वर विचारा है। वह बहुत ही सुंदर, पवित्र, सुखदायक और सुशील है, जि  ......

बालकांड दोहा 81

Filed under: Balkand
चौपाई :जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा॥अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा॥1॥भावार्थ:- हे मुनीश्वरों! यदि आप पहले मिलते, तो मैं आपका उपदेश सिर-माथे रखकर सुनती, परन्तु अब तो मैं अपना जन्म   ......

बालकांड दोहा 82

Filed under: Balkand
चौपाई :जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए॥बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई॥1॥भावार्थ:- मुनियों ने जाकर हिमवान्‌ को पार्वतीजी के पास भेजा और वे विनती करके उनको घर ले आए, फिर सप्तर्षियों ने शिवजी   ......

बालकांड दोहा 83

Filed under: Balkand
चौपाई :मोर कहा सुनि करहु उपाई। होइहि ईस्वर करिहि सहाई॥सतीं जो तजी दच्छ मख देहा। जनमी जाइ हिमाचल गेहा॥1॥भावार्थ:- मेरी बात सुनकर उपाय करो। ईश्वर सहायता करेंगे और काम हो जाएगा। सतीजी ने जो दक्ष के यज्ञ में देह का त्याग किया था, उन्हों  ......

बालकांड दोहा 84

Filed under: Balkand
चौपाई :तदपि करब मैं काजु तुम्हारा। श्रुति कह परम धरम उपकारा॥पर हित लागि तजइ जो देही। संतत संत प्रसंसहिं तेही॥1॥भावार्थ:- तथापि मैं तुम्हारा काम तो करूँगा, क्योंकि वेद दूसरे के उपकार को परम धर्म कहते हैं। जो दूसरे के हित के लिए अपना   ......

बालकांड दोहा 85

Filed under: Balkand
चौपाई :सब के हृदयँ मदन अभिलाषा। लता निहारि नवहिं तरु साखा॥नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाईं। संगम करहिं तलाव तलाईं॥1॥भावार्थ:- सबके हृदय में काम की इच्छा हो गई। लताओं (बेलों) को देखकर वृक्षों की डालियाँ झुकने लगीं। नदियाँ उमड़-उमड़कर समु  ......

बालकांड दोहा 86

Filed under: Balkand
चौपाई :उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ॥सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू॥1॥भावार्थ:- दो घड़ी तक ऐसा तमाशा हुआ, जब तक कामदेव शिवजी के पास पहुँच गया। शिवजी को देखकर कामदेव डर गया, तब सारा संसार फिर जैसा-क  ......

बालकांड दोहा 87

Filed under: Balkand
चौपाई :देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा॥सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥1॥भावार्थ:- आम के वृक्ष की एक सुंदर डाली देखकर मन में क्रोध से भरा हुआ कामदेव उस पर चढ़ गया। उसने पुष्प धनुष पर अपने (पाँचों  ......

बालकांड दोहा 88

Filed under: Balkand
चौपाई :जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥1॥भावार्थ:- जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) क  ......

बालकांड दोहा 89

Filed under: Balkand
चौपाई :यह उत्सव देखिअ भरि लोचन। सोइ कछु करहु मदन मद मोचन॥कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा। कृपासिन्धु यह अति भल कीन्हा॥1॥भावार्थ:- हे कामदेव के मद को चूर करने वाले! आप ऐसा कुछ कीजिए, जिससे सब लोग इस उत्सव को नेत्र भरकर देखें। हे कृपा के   ......

बालकांड दोहा 90

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि बोलीं मुसुकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी॥तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा॥1॥भावार्थ:-यह सुनकर पार्वतीजी मुस्कुराकर बोलीं- हे विज्ञानी मुनिवरों! आपने उचित ही कहा। आपकी समझ में शिवजी ने कामदे  ......

बालकांड दोहा 91

Filed under: Balkand
चौपाई :सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा। मदन दहन सुनि अति दुखु पावा॥बहुरि कहेउ रति कर बरदाना। सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना॥1॥भावार्थ:- उन्होंने पर्वतराज हिमाचल को सब हाल सुनाया। कामदेव का भस्म होना सुनकर हिमाचल बहुत दुःखी हुए। फिर मु  ......

बालकांड दोहा 92

Filed under: Balkand
चौपाई :सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥1॥भावार्थ:- शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे। जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया। शिवजी ने साँपो  ......

बालकांड दोहा 93

Filed under: Balkand
चौपाई :बर अनुहारि बरात न भाई। हँसी करैहहु पर पुर जाई॥बिष्नु बचन सुनि सुर मुसुकाने। निज निज सेन सहित बिलगाने॥1॥भावार्थ:- हे भाई! हम लोगों की यह बारात वर के योग्य नहीं है। क्या पराए नगर में जाकर हँसी कराओगे? विष्णु भगवान की बात सुनकर द  ......

बालकांड दोहा 94

Filed under: Balkand
चौपाई :जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता॥इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना। अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना॥1॥भावार्थ:- जैसा दूल्हा है, अब वैसी ही बारात बन गई है। मार्ग में चलते हुए भाँति-भाँति के कौतुक (तमाशे) होते जाते हैं। इधर ह  ......

बालकांड दोहा 95

Filed under: Balkand
चौपाई :नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई॥करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना॥1॥भावार्थ:- बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई, जिससे उसकी शोभा बढ़ गई। अगवानी करने वाले लोग बनाव-श्रृंगार करके तथा नान  ......

बालकांड दोहा 96

Filed under: Balkand
चौपाई :लै अगवान बरातहि आए। दिए सबहि जनवास सुहाए॥मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी॥1॥भावार्थ:- अगवान लोग बारात को लिवा लाए, उन्होंने सबको सुंदर जनवासे ठहरने को दिए। मैना (पार्वतीजी की माता) ने शुभ आरती सजाई और उनके साथ क  ......

बालकांड दोहा 97

Filed under: Balkand
चौपाई :नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा॥अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लागि तपु कीन्हा॥1॥भावार्थ:- मैंने नारद का क्या बिगाड़ा था, जिन्होंने मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया और जिन्होंने पार्वती को ऐसा उपदेश दिय  ......

बालकांड दोहा 98

Filed under: Balkand
चौपाई :तब नारद सबही समुझावा। पूरुब कथा प्रसंगु सुनावा॥मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी॥1॥भावार्थ:- तब नारदजी ने पूर्वजन्म की कथा सुनाकर सबको समझाया (और कहा) कि हे मैना! तुम मेरी सच्ची बात सुनो, तुम्हारी यह लड़की साक्षा  ......

बालकांड दोहा 99

Filed under: Balkand
चौपाई :तब मयना हिमवंतु अनंदे। पुनि पुनि पारबती पद बंदे॥नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने। नगर लोग सब अति हरषाने॥1॥भावार्थ:- तब मैना और हिमवान आनंद में मग्न हो गए और उन्होंने बार-बार पार्वती के चरणों की वंदना की। स्त्री, पुरुष, बालक, युवा औ  ......

बालकांड दोहा 100

Filed under: Balkand
चौपाई :बोलि सकल सुर सादर लीन्हे। सबहि जथोचित आसन दीन्हे॥बेदी बेद बिधान सँवारी। सुभग सुमंगल गावहिं नारी॥1॥भावार्थ:- सब देवताओं को आदर सहित बुलवा लिया और सबको यथायोग्य आसन दिए। वेद की रीति से वेदी सजाई गई और स्त्रियाँ सुंदर श्रेष्  ......

बालकांड दोहा 101

Filed under: Balkand
चौपाई :जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई॥गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी॥1॥भावार्थ:- वेदों में विवाह की जैसी रीति कही गई है, महामुनियों ने वह सभी रीति करवाई। पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर   ......

बालकांड दोहा 102

Filed under: Balkand
चौपाई :बहु बिधि संभु सासु समुझाई। गवनी भवन चरन सिरु नाई॥जननीं उमा बोलि तब लीन्ही। लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही॥1॥भावार्थ:- शिवजी ने बहुत तरह से अपनी सास को समझाया। तब वे शिवजी के चरणों में सिर नवाकर घर गईं। फिर माता ने पार्वती को बुला ल  ......

बालकांड दोहा 103

Filed under: Balkand
चौपाई :तुरत भवन आए गिरिराई। सकल सैल सर लिए बोलाई॥आदर दान बिनय बहुमाना। सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना॥1॥भावार्थ:- पर्वतराज हिमाचल तुरंत घर आए और उन्होंने सब पर्वतों और सरोवरों को बुलाया। हिमवान ने आदर, दान, विनय और बहुत सम्मानपूर्वक सबक  ......

बालकांड दोहा 104

Filed under: Balkand
चौपाई :संभु चरित सुनि सरस सुहावा। भरद्वाज मुनि अति सुखु पावा॥बहु लालसा कथा पर बाढ़ी। नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी॥1॥भावार्थ:- शिवजी के रसीले और सुहावने चरित्र को सुनकर मुनि भरद्वाजजी ने बहुत ही सुख पाया। कथा सुनने की उनकी लालसा बह  ......

बालकांड दोहा 105

Filed under: Balkand
चौपाई :मैं जाना तुम्हार गुन सीला। कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला॥सुनु मुनि आजु समागम तोरें। कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें॥1॥भावार्थ:- मैंने तुम्हारा गुण और शील जान लिया। अब मैं श्री रघुनाथजी की लीला कहता हूँ, सुनो। हे मुनि! सुनो, आज तुम्हार  ......

बालकांड दोहा 106

Filed under: Balkand
चौपाई :हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं। ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं॥तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला। नित नूतन सुंदर सब काला॥1॥भावार्थ:- जो भगवान विष्णु और महादेवजी से विमुख हैं और जिनकी धर्म में प्रीति नहीं है, वे लोग स्वप्न में भी वहाँ नह  ......

बालकांड दोहा 107

Filed under: Balkand
चौपाई :बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें॥पारबती भल अवसरु जानी। गईं संभु पहिं मातु भवानी॥1॥भावार्थ:- कामदेव के शत्रु शिवजी वहाँ बैठे हुए ऐसे शोभित हो रहे थे, मानो शांतरस ही शरीर धारण किए बैठा हो। अच्छा मौका जानकर शिव  ......

बालकांड दोहा 108

Filed under: Balkand
चौपाई :जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी॥तौ प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना॥1॥भावार्थ:- हे सुख की राशि ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं और सचमुच मुझे अपनी दासी (या अपनी सच्ची दासी) जानते हैं, तो हे प्रभो! आ  ......

बालकांड दोहा 109

Filed under: Balkand
चौपाई :जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ। कहहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ॥अग्य जानि रिस उर जनि धरहू। जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू॥1॥भावार्थ:- यदि इच्छारहित, व्यापक, समर्थ ब्रह्म कोई और हैं, तो हे नाथ! मुझे उसे समझाकर कहिए। मुझे नादान समझकर मन में क्रो  ......

बालकांड दोहा 110

Filed under: Balkand
चौपाई :जदपि जोषिता नहिं अधिकारी। दासी मन क्रम बचन तुम्हारी॥गूढ़उ तत्त्व न साधु दुरावहिं। आरत अधिकारी जहँ पावहिं॥1॥भावार्थ:- यद्यपि स्त्री होने के कारण मैं उसे सुनने की अधिकारिणी नहीं हूँ, तथापि मैं मन, वचन और कर्म से आपकी दासी हूँ।  ......

बालकांड दोहा 111

Filed under: Balkand
चौपाई :पुनि प्रभु कहहु सो तत्त्व बखानी। जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी॥भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। पुनि सब बरनहु सहित बिभागा॥1॥भावार्थ:- हे प्रभु! फिर आप उस तत्त्व को समझाकर कहिए, जिसकी अनुभूति में ज्ञानी मुनिगण सदा मग्न रहते हैं औ  ......

बालकांड दोहा 112

Filed under: Balkand
चौपाई :झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें॥जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई॥1॥भावार्थ:- जिसके बिना जाने झूठ भी सत्य मालूम होता है, जैसे बिना पहचाने रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है और जिसके जान ल  ......

बालकांड दोहा 113

Filed under: Balkand
चौपाई :तदपि असंका कीन्हिहु सोई। कहत सुनत सब कर हित होई॥जिन्ह हरिकथा सुनी नहिं काना। श्रवन रंध्र अहिभवन समाना॥1॥भावार्थ:- फिर भी तुमने इसीलिए वही (पुरानी) शंका की है कि इस प्रसंग के कहने-सुनने से सबका कल्याण होगा। जिन्होंने अपने का  ......

बालकांड दोहा 114

Filed under: Balkand
चौपाई :रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुग रूपी वृक्ष को क  ......

बालकांड दोहा 115

Filed under: Balkand
चौपाई :अग्य अकोबिद अंध अभागी। काई बिषय मुकुर मन लागी॥लंपट कपटी कुटिल बिसेषी। सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी॥1॥भावार्थ:- जो अज्ञानी, मूर्ख, अंधे और भाग्यहीन हैं और जिनके मन रूपी दर्पण पर विषय रूपी काई जमी हुई है, जो व्यभिचारी, छली और बड़े क  ......

बालकांड दोहा 116

Filed under: Balkand
चौपाई :सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥1॥भावार्थ:- सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है- मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा कहते हैं। जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अ  ......

बालकांड दोहा 117

Filed under: Balkand
चौपाई :निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी॥जथा गगन घन पटल निहारी। झाँपेउ भानु कहहिं कुबिचारी॥1॥भावार्थ:- अज्ञानी मनुष्य अपने भ्रम को तो समझते नहीं और वे मूर्ख प्रभु श्री रामचन्द्रजी पर उसका आरोप करते हैं,   ......

बालकांड दोहा 118

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दुख अहई॥जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दुख होई॥1॥भावार्थ:- इसी तरह यह संसार भगवान के आश्रित रहता है। यद्यपि यह असत्य है, तो भी दुःख तो देता ही है, जिस तरह स्वप्न में कोई सिर क  ......

बालकांड दोहा 119

Filed under: Balkand
चौपाई :कासीं मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी॥सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी। रघुबर सब उर अंतरजामी॥1॥भावार्थ:- (हे पार्वती !) जिनके नाम के बल से काशी में मरते हुए प्राणी को देखकर मैं उसे (राम मंत्र देकर) शोकरहित कर देता हूँ (मुक्त   ......

बालकांड दोहा 120

Filed under: Balkand
चौपाई :ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी। मिटा मोह सरदातप भारी॥तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ। राम स्वरूप जानि मोहि परेऊ॥1॥भावार्थ:- आपकी चन्द्रमा की किरणों के समान शीतल वाणी सुनकर मेरा अज्ञान रूपी शरद-ऋतु (क्वार) की धूप का भारी ताप मिट गया।   ......

बालकांड दोहा 121

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥1॥भावार्थ:- हे पार्वती! सुनो, वेद-शास्त्रों ने श्री हरि के सुंदर, विस्तृत और निर्मल चरित्रों का गान किया है। हरि का अवतार जिस   ......

बालकांड दोहा 122

Filed under: Balkand
चौपाई :सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥1॥भावार्थ:- उसी यश को गा-गाकर भक्तजन भवसागर से तर जाते हैं। कृपासागर भगवान भक्तों के हित के लिए शरीर धारण करते हैं। श्री रामचन्  ......

बालकांड दोहा 123

Filed under: Balkand
चौपाई :मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥1॥भावार्थ:- भगवान के द्वारा मारे जाने पर भी वे (हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु) इसीलिए मुक्त नहीं हुए कि ब्राह्मण के वचन (शाप) का प्  ......

बालकांड दोहा 124

Filed under: Balkand
चौपाई :तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना॥तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ॥1॥भावार्थ:- लीलाओं के भंडार कृपालु हरि ने उस स्त्री के शाप को प्रामाण्य दिया (स्वीकार किया)। वही जलन्धर उस कल्प में रावण हुआ, जि  ......

बालकांड दोहा 125

Filed under: Balkand
चौपाई :हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि॥आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा॥1॥भावार्थ:- हिमालय पर्वत में एक बड़ी पवित्र गुफा थी। उसके समीप ही सुंदर गंगाजी बहती थीं। वह परम पवित्र सुंदर आश्रम देखने पर   ......

बालकांड दोहा 126

Filed under: Balkand
चौपाई :तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ। निज मायाँ बसंत निरमयऊ॥कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा। कूजहिं कोकिल गुंजहिं भृंगा॥1॥भावार्थ:- जब कामदेव उस आश्रम में गया, तब उसने अपनी माया से वहाँ वसन्त ऋतु को उत्पन्न किया। तरह-तरह के वृक्षों पर रंग-ब  ......

बालकांड दोहा 127

Filed under: Balkand
चौपाई :भयउ न नारद मन कछु रोषा। कहि प्रिय बचन काम परितोषा॥नाइ चरन सिरु आयसु पाई। गयउ मदन तब सहित सहाई॥1॥भावार्थ:- नारदजी के मन में कुछ भी क्रोध न आया। उन्होंने प्रिय वचन कहकर कामदेव का समाधान किया। तब मुनि के चरणों में सिर नवाकर और उन  ......

बालकांड दोहा 128

Filed under: Balkand
चौपाई :राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई। करै अन्यथा अस नहिं कोई॥संभु बचन मुनि मन नहिं भाए। तब बिरंचि के लोक सिधाए॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी जो करना चाहते हैं, वही होता है, ऐसा कोई नहीं जो उसके विरुद्ध कर सके। श्री शिवजी के वचन नारदजी के म  ......

बालकांड दोहा 129

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें। ग्यान बिराग हृदय नहिं जाकें॥ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा। तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा॥1॥भावार्थ:- हे मुनि! सुनिए, मोह तो उसके मन में होता है, जिसके हृदय में ज्ञान-वैराग्य नहीं है। आप तो ब्रह्मचर्यव्रत   ......

बालकांड दोहा 130

Filed under: Balkand
चौपाई :बसहिं नगर सुंदर नर नारी। जनु बहु मनसिज रति तनुधारी॥तेहिं पुर बसइ सीलनिधि राजा। अगनित हय गय सेन समाजा॥1॥भावार्थ:- उस नगर में ऐसे सुंदर नर-नारी बसते थे, मानो बहुत से कामदेव और (उसकी स्त्री) रति ही मनुष्य शरीर धारण किए हुए हों। उस  ......

बालकांड दोहा 131

Filed under: Balkand
चौपाई :देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी॥लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने॥1॥भावार्थ:- उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको   ......

बालकांड दोहा 132

Filed under: Balkand
चौपाई :हरि सन मागौं सुंदरताई। होइहि जात गहरु अति भाई॥मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥1॥भावार्थ:- (एक काम करूँ कि) भगवान से सुंदरता माँगूँ, पर भाई! उनके पास जाने में तो बहुत देर हो जाएगी, किन्तु श्री हरि के समान मेरा हित  ......

बालकांड दोहा 133

Filed under: Balkand
चौपाई :कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी। बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी॥एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ। कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ॥1॥भावार्थ:- हे योगी मुनि! सुनिए, रोग से व्याकुल रोगी कुपथ्य माँगे तो वैद्य उसे नहीं देता। इसी प्रकार मैंने भी तुम्हा  ......

बालकांड दोहा 134

Filed under: Balkand
चौपाई :जेहिं समाज बैठे मुनि जाई। हृदयँ रूप अहमिति अधिकाई॥तहँ बैठे महेस गन दोऊ। बिप्रबेष गति लखइ न कोऊ॥1॥भावार्थ:- नारदजी अपने हृदय में रूप का बड़ा अभिमान लेकर जिस समाज (पंक्ति) में जाकर बैठे थे, ये शिवजी के दोनों गण भी वहीं बैठ गए। ब्र  ......

बालकांड दोहा 135

Filed under: Balkand
चौपाई :जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिं न बिलोकी भूली॥पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं॥1॥भावार्थ:- जिस ओर नारदजी (रूप के गर्व में) फूले बैठे थे, उस ओर उसने भूलकर भी नहीं ताका। नारद मुनि बार-बार उचकते और   ......

बालकांड दोहा 136

Filed under: Balkand
चौपाई :पुनि जल दीख रूप निज पावा। तदपि हृदयँ संतोष न आवा॥फरकत अधर कोप मन माहीं। सपदि चले कमलापति पाहीं॥1॥भावार्थ:- मुनि ने फिर जल में देखा, तो उन्हें अपना (असली) रूप प्राप्त हो गया, तब भी उन्हें संतोष नहीं हुआ। उनके होठ फड़क रहे थे और मन   ......

बालकांड दोहा 137

Filed under: Balkand
चौपाई :परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥भलेहि मंद मंदेहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥1॥भावार्थ:- तुम परम स्वतंत्र हो, सिर पर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मन को भाता है, (स्वच्छन्दता से) वही करते हो। भले को बुरा और   ......

बालकांड दोहा 138

Filed under: Balkand
चौपाई :जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी॥तब मुनि अति सभीत हरि चरना। गहे पाहि प्रनतारति हरना॥1॥भावार्थ:- जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यन्त भयभीत होकर श्र  ......

बालकांड दोहा 139

Filed under: Balkand
चौपाई :हर गन मुनिहि जात पथ देखी। बिगत मोह मन हरष बिसेषी॥अति सभीत नारद पहिं आए। गहि पद आरत बचन सुहाए॥1॥भावार्थ:- शिवजी के गणों ने जब मुनि को मोहरहित और मन में बहुत प्रसन्न होकर मार्ग में जाते हुए देखा तब वे अत्यन्त भयभीत होकर नारदजी क  ......

बालकांड दोहा 140

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुंदर सुखद बिचित्र घनेरे॥कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं॥1॥भावार्थ:- इस प्रकार भगवान के अनेक सुंदर, सुखदायक और अलौकिक जन्म और कर्म हैं। प्रत्येक कल्प में जब-जब भगवान अवतार ल  ......

बालकांड दोहा 141

Filed under: Balkand
चौपाई :अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी॥जेहि कारन अज अगुन अरूपा। ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा॥1॥भावार्थ:- हे गिरिराजकुमारी! अब भगवान के अवतार का वह दूसरा कारण सुनो- मैं उसकी विचित्र कथा विस्तार करके कहता हूँ- जिस कार  ......

बालकांड दोहा 142

Filed under: Balkand
चौपाई :स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा॥दंपति धरम आचरन नीका। अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका॥1॥भावार्थ:- स्वायम्भुव मनु और (उनकी पत्नी) शतरूपा, जिनसे मनुष्यों की यह अनुपम सृष्टि हुई, इन दोनों पति-पत्नी के धर्म औ  ......

बालकांड दोहा 143

Filed under: Balkand
चौपाई :बरबस राज सुतहि तब दीन्हा। नारि समेत गवन बन कीन्हा॥तीरथ बर नैमिष बिख्याता। अति पुनीत साधक सिधि दाता॥1॥भावार्थ:- तब मनुजी ने अपने पुत्र को जबर्दस्ती राज्य देकर स्वयं स्त्री सहित वन को गमन किया। अत्यन्त पवित्र और साधकों को सि  ......

बालकांड दोहा 144

Filed under: Balkand
चौपाई :करहिं अहार साक फल कंदा। सुमिरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा॥पुनि हरि हेतु करन तप लागे। बारि अधार मूल फल त्यागे॥1॥भावार्थ:- वे साग, फल और कन्द का आहार करते थे और सच्चिदानंद ब्रह्म का स्मरण करते थे। फिर वे श्री हरि के लिए तप करने लगे औ  ......

बालकांड दोहा 145

Filed under: Balkand
चौपाई :बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ ॥बिधि हरि हर तप देखि अपारा। मनु समीप आए बहु बारा॥1॥भावार्थ:- दस हजार वर्ष तक उन्होंने वायु का आधार भी छोड़ दिया। दोनों एक पैर से खड़े रहे। उनका अपार तप देखकर ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी कई ब  ......

बालकांड दोहा 146

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू। बिधि हरि हर बंदित पद रेनू॥सेवत सुलभ सकल सुखदायक। प्रनतपाल सचराचर नायक॥1॥भावार्थ:- हे प्रभो! सुनिए, आप सेवकों के लिए कल्पवृक्ष और कामधेनु हैं। आपके चरण रज की ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी भी वंदना करते ह  ......

बालकांड दोहा 147

Filed under: Balkand
चौपाई :सरद मयंक बदन छबि सींवा। चारु कपोल चिबुक दर ग्रीवा॥अधर अरुन रद सुंदर नासा। बिधु कर निकर बिनिंदक हासा॥1॥भावार्थ:- उनका मुख शरद (पूर्णिमा) के चन्द्रमा के समान छबि की सीमास्वरूप था। गाल और ठोड़ी बहुत सुंदर थे, गला शंख के समान (त्रि  ......

बालकांड दोहा 148

Filed under: Balkand
चौपाई :पद राजीव बरनि नहिं जाहीं। मुनि मन मधुप बसहिं जेन्ह माहीं॥बाम भाग सोभति अनुकूला। आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला॥1॥भावार्थ:- जिनमें मुनियों के मन रूपी भौंरे बसते हैं, भगवान के उन चरणकमलों का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। भगवान के ब  ......

बालकांड दोहा 149

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि प्रभु बचन जोरि जुग पानी। धरि धीरजु बोली मृदु बानी॥नाथ देखि पद कमल तुम्हारे। अब पूरे सब काम हमारे॥1॥भावार्थ:- प्रभु के वचन सुनकर, दोनों हाथ जोड़कर और धीरज धरकर राजा ने कोमल वाणी कही- हे नाथ! आपके चरणकमलों को देखकर अब हमारी स  ......

बालकांड दोहा 150

Filed under: Balkand
चौपाई :देखि प्रीति सुनि बचन अमोले। एवमस्तु करुनानिधि बोले॥आपु सरिस खोजौं कहँ जाई। नृप तव तनय होब मैं आई॥1॥भावार्थ:- राजा की प्रीति देखकर और उनके अमूल्य वचन सुनकर करुणानिधान भगवान बोले- ऐसा ही हो। हे राजन्‌! मैं अपने समान (दूसरा) कहा  ......

बालकांड दोहा 151

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना। कृपासिंधु बोले मृदु बचना॥जो कछु रुचि तुम्हरे मन माहीं। मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं॥1॥भावार्थ:- (रानी की) कोमल, गूढ़ और मनोहर श्रेष्ठ वाक्य रचना सुनकर कृपा के समुद्र भगवान कोमल वचन बोले- तुम्हारे मन   ......

बालकांड दोहा 152

Filed under: Balkand
चौपाई :इच्छामय नरबेष सँवारें। होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारें॥अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥1॥भावार्थ:- इच्छानिर्मित मनुष्य रूप सजकर मैं तुम्हारे घर प्रकट होऊँगा। हे तात! मैं अपने अंशों सहित देह धारण करके भक्त  ......

बालकांड दोहा 153

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति संभु बखानी॥बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥1॥भावार्थ:- हे मुनि! वह पवित्र और प्राचीन कथा सुनो, जो शिवजी ने पार्वती से कही थी। संसार में प्रसिद्ध एक कैकय देश है। वह  ......

बालकांड दोहा 154

Filed under: Balkand
चौपाई :नृप हितकारक सचिव सयाना। नाम धरमरुचि सुक्र समाना॥सचिव सयान बंधु बलबीरा। आपु प्रतापपुंज रनधीरा॥1॥भावार्थ:- राजा का हित करने वाला और शुक्राचार्य के समान बुद्धिमान धर्मरुचि नामक उसका मंत्री था। इस प्रकार बुद्धिमान मंत्री औ  ......

बालकांड दोहा 155

Filed under: Balkand
चौपाई :भूप प्रतापभानु बल पाई। कामधेनु भै भूमि सुहाई॥सब दुख बरजित प्रजा सुखारी। धरमसील सुंदर नर नारी॥1॥भावार्थ:- राजा प्रतापभानु का बल पाकर भूमि सुंदर कामधेनु (मनचाही वस्तु देने वाली) हो गई। (उनके राज्य में) प्रजा सब (प्रकार के) दुःख  ......

बालकांड दोहा 156

Filed under: Balkand
चौपाई :हृदयँ न कछु फल अनुसंधाना। भूप बिबेकी परम सुजाना॥करइ जे धरम करम मन बानी। बासुदेव अर्पित नृप ग्यानी॥1॥भावार्थ:- (राजा के) हृदय में किसी फल की टोह (कामना) न थी। राजा बड़ा ही बुद्धिमान और ज्ञानी था। वह ज्ञानी राजा कर्म, मन और वाणी से   ......

बालकांड दोहा 157

Filed under: Balkand
चौपाई :आवत देखि अधिक रव बाजी। चलेउ बराह मरुत गति भाजी॥तुरत कीन्ह नृप सर संधाना। महि मिलि गयउ बिलोकत बाना॥1॥भावार्थ:- अधिक शब्द करते हुए घोड़े को (अपनी तरफ) आता देखकर सूअर पवन वेग से भाग चला। राजा ने तुरंत ही बाण को धनुष पर चढ़ाया। सूअर   ......

बालकांड दोहा 158

Filed under: Balkand
चौपाई :फिरत बिपिन आश्रम एक देखा। तहँ बस नृपति कपट मुनिबेषा॥जासु देस नृप लीन्ह छड़ाई। समर सेन तजि गयउ पराई॥1॥भावार्थ:- वन में फिरते-फिरते उसने एक आश्रम देखा, वहाँ कपट से मुनि का वेष बनाए एक राजा रहता था, जिसका देश राजा प्रतापभानु ने   ......

बालकांड दोहा 159

Filed under: Balkand
चौपाई :गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ। निज आश्रम तापस लै गयऊ॥आसन दीन्ह अस्त रबि जानी। पुनि तापस बोलेउ मृदु बानी॥1॥भावार्थ:- सारी थकावट मिट गई, राजा सुखी हो गया। तब तपस्वी उसे अपने आश्रम में ले गया और सूर्यास्त का समय जानकर उसने (राजा को बैठ  ......

बालकांड दोहा 160

Filed under: Balkand
चौपाई :भलेहिं नाथ आयसु धरि सीसा। बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा॥नृप बहु भाँति प्रसंसेउ ताही। चरन बंदि निज भाग्य सराही॥1॥भावार्थ:- हे नाथ! बहुत अच्छा, ऐसा कहकर और उसकी आज्ञा सिर चढ़ाकर, घोड़े को वृक्ष से बाँधकर राजा बैठ गया। राजा ने उसकी बहु  ......

बालकांड दोहा 161

Filed under: Balkand
चौपाई :कह नृप जे बिग्यान निधाना। तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना॥सदा रहहिं अपनपौ दुराएँ। सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ॥1॥भावार्थ:- राजा ने कहा- जो आपके सदृश विज्ञान के निधान और सर्वथा अभिमानरहित होते हैं, वे अपने स्वरूप को सदा छिपाए रहते हैं  ......

बालकांड दोहा 162

Filed under: Balkand
चौपाई :तातें गुपुत रहउँ जग माहीं। हरि तजि किमपि प्रयोजन नाहीं॥प्रभु जानत सब बिनहिं जनाए। कहहु कवनि सिधि लोक रिझाएँ॥1॥भावार्थ:- (कपट-तपस्वी ने कहा-) इसी से मैं जगत में छिपकर रहता हूँ। श्री हरि को छोड़कर किसी से कुछ भी प्रयोजन नहीं रखत  ......

बालकांड दोहा 163

Filed under: Balkand
चौपाई :जनि आचरजु करहु मन माहीं। सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं॥तप बल तें जग सृजइ बिधाता। तप बल बिष्नु भए परित्राता॥1॥भावार्थ:- हे पुत्र! मन में आश्चर्य मत करो, तप से कुछ भी दुर्लभ नहीं है, तप के बल से ब्रह्मा जगत को रचते हैं। तप के ही बल से   ......

बालकांड दोहा 164

Filed under: Balkand
चौपाई :नाम तुम्हार प्रताप दिनेसा। सत्यकेतु तव पिता नरेसा॥गुर प्रसाद सब जानिअ राजा। कहिअ न आपन जानि अकाजा॥1॥भावार्थ:- तुम्हारा नाम प्रतापभानु है, महाराज सत्यकेतु तुम्हारे पिता थे। हे राजन्‌! गुरु की कृपा से मैं सब जानता हूँ, पर अपन  ......

बालकांड दोहा 165

Filed under: Balkand
चौपाई :कह तापस नृप ऐसेइ होऊ। कारन एक कठिन सुनु सोऊ॥कालउ तुअ पद नाइहि सीसा। एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा॥1॥भावार्थ:- तपस्वी ने कहा- हे राजन्‌! ऐसा ही हो, पर एक बात कठिन है, उसे भी सुन लो। हे पृथ्वी के स्वामी! केवल ब्राह्मण कुल को छोड़ काल भी तुम  ......

बालकांड दोहा 166

Filed under: Balkand
चौपाई :तातें मैं तोहि बरजउँ राजा। कहें कथा तव परम अकाजा॥छठें श्रवन यह परत कहानी। नास तुम्हार सत्य मम बानी॥1॥भावार्थ:- हे राजन्‌! मैं तुमको इसलिए मना करता हूँ कि इस प्रसंग को कहने से तुम्हारी बड़ी हानि होगी। छठे कान में यह बात पड़ते ही   ......

बालकांड दोहा 167

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं। कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं॥अहइ एक अति सुगम उपाई। तहाँ परन्तु एक कठिनाई॥1॥भावार्थ:- (तपस्वी ने कहा-) हे राजन्‌ !सुनो, संसार में उपाय तो बहुत हैं, पर वे कष्ट साध्य हैं (बड़ी कठिनता से बनने में आते हैं  ......

बालकांड दोहा 168

Filed under: Balkand
चौपाई :जानि नृपहि आपन आधीना। बोला तापस कपट प्रबीना॥सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही। जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही॥1॥भावार्थ:- राजा को अपने अधीन जानकर कपट में प्रवीण तपस्वी बोला- हे राजन्‌! सुनो, मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, जगत में मुझे कुछ भी दुर  ......

बालकांड दोहा 169

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें। होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें॥करिहहिं बिप्र होममख सेवा। तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा॥1॥भावार्थ:- हे राजन्‌! इस प्रकार बहुत ही थोड़े परिश्रम से सब ब्राह्मण तुम्हारे वश में हो जाएँगे। ब्राह्मण हवन, य  ......

बालकांड दोहा 170

Filed under: Balkand
चौपाई :सयन कीन्ह नृप आयसु मानी। आसन जाइ बैठ छलग्यानी॥श्रमित भूप निद्रा अति आई। सो किमि सोव सोच अधिकाई॥1॥भावार्थ:- राजा ने आज्ञा मानकर शयन किया और वह कपट-ज्ञानी आसन पर जा बैठा। राजा थका था, (उसे) खूब (गहरी) नींद आ गई। पर वह कपटी कैसे सोत  ......

बालकांड दोहा 171

Filed under: Balkand
चौपाई :तापस नृप निज सखहि निहारी। हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी॥मित्रहि कहि सब कथा सुनाई। जातुधान बोला सुख पाई॥1॥भावार्थ:- तपस्वी राजा अपने मित्र को देख प्रसन्न हो उठकर मिला और सुखी हुआ। उसने मित्र को सब कथा कह सुनाई, तब राक्षस आनंदित ह  ......

बालकांड दोहा 172

Filed under: Balkand
चौपाई :आपु बिरचि उपरोहित रूपा। परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा॥जागेउ नृप अनभएँ बिहाना। देखि भवन अति अचरजु माना॥1॥भावार्थ:- वह आप पुरोहित का रूप बनाकर उसकी सुंदर सेज पर जा लेटा। राजा सबेरा होने से पहले ही जागा और अपना घर देखकर उसने बड़ा ही आश  ......

बालकांड दोहा 173

Filed under: Balkand
चौपाई :उपरोहित जेवनार बनाई। छरस चारि बिधि जसि श्रुति गाई॥मायामय तेहिं कीन्हि रसोई। बिंजन बहु गनि सकइ न कोई॥1॥भावार्थ:- पुरोहित ने छह रस और चार प्रकार के भोजन, जैसा कि वेदों में वर्णन है, बनाए। उसने मायामयी रसोई तैयार की और इतने व्यं  ......

बालकांड दोहा 174

Filed under: Balkand
चौपाई :छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई। घालै लिए सहित समुदाई॥ईश्वर राखा धरम हमारा। जैहसि तैं समेत परिवारा॥1॥भावार्थ:- रे नीच क्षत्रिय! तूने तो परिवार सहित ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें नष्ट करना चाहा था, ईश्वर ने हमारे धर्म की रक्षा की। अ  ......

बालकांड दोहा 175

Filed under: Balkand
चौपाई :अस कहि सब महिदेव सिधाए। समाचार पुरलोगन्ह पाए॥सोचहिं दूषन दैवहि देहीं। बिरचत हंस काग किए जेहीं॥1॥भावार्थ:-ऐसा कहकर सब ब्राह्मण चले गए। नगरवासियों ने (जब) यह समाचार पाया, तो वे चिन्ता करने और विधाता को दोष देने लगे, जिसने हंस ब  ......

बालकांड दोहा 176

Filed under: Balkand
चौपाई:काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा॥दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा॥1॥भावार्थ:- हे मुनि! सुनो, समय पाकर वही राजा परिवार सहित रावण नामक राक्षस हुआ। उसके दस सिर और बीस भुजाएँ थीं और वह बड़ा ही प्रचण्ड   ......

बालकांड दोहा 177

Filed under: Balkand
चौपाई :कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई। परम उग्र नहिं बरनि सो जाई॥गयउ निकट तप देखि बिधाता। मागहु बर प्रसन्न मैं ताता॥1॥भावार्थ:- तीनों भाइयों ने अनेकों प्रकार की बड़ी ही कठिन तपस्या की, जिसका वर्णन नहीं हो सकता। (उनका उग्र) तप देखकर ब्रह्  ......

बालकांड दोहा 178

Filed under: Balkand
चौपाई :तिन्हहि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए॥मय तनुजा मंदोदरि नामा। परम सुंदरी नारि ललामा॥1॥भावार्थ:- उनको वर देकर ब्रह्माजी चले गए और वे (तीनों भाई) हर्षित हेकर अपने घर लौट आए। मय दानव की मंदोदरी नाम की कन्या परम सुंदरी  ......

बालकांड दोहा 179

Filed under: Balkand
चौपाई :रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर संघारे॥अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे॥1॥भावार्थ:- (पहले) वहाँ बड़े-बड़े योद्धा राक्षस रहते थे। देवताओं ने उन सबको युद्द में मार डाला। अब इंद्र की प्रेरणा से वहाँ क  ......

बालकांड दोहा 180

Filed under: Balkand
चौपाई :सुख संपति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई॥नित नूतन सब बाढ़त जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥1॥भावार्थ:- सुख, सम्पत्ति, पुत्र, सेना, सहायक, जय, प्रताप, बल, बुद्धि और बड़ाई- ये सब उसके नित्य नए (वैसे ही) बढ़ते जाते थे, जैसे प्रत्ये  ......

बालकांड दोहा 181

Filed under: Balkand
चौपाई :कामरूप जानहिं सब माया। सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया॥दसमुख बैठ सभाँ एक बारा। देखि अमित आपन परिवारा॥1॥भावार्थ:- सभी राक्षस मनमाना रूप बना सकते थे और (आसुरी) माया जानते थे। उनके दया-धर्म स्वप्न में भी नहीं था। एक बार सभा में बैठ  ......

बालकांड दोहा 182

Filed under: Balkand
चौपाई :मेघनाद कहूँ पुनि हँकरावा। दीन्हीं सिख बलु बयरु बढ़ावा॥जे सुर समर धीर बलवाना। जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना॥1॥भावार्थ:- फिर उसने मेघनाद को बुलवाया और सिखा-पढ़ाकर उसके बल और देवताओं के प्रति बैरभाव को उत्तेजना दी। (फिर कहा-) हे पुत  ......

बालकांड दोहा 183

Filed under: Balkand
चौपाई :इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ। सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ॥प्रथमहिं जिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा। तिन्ह कर चरित सुनहु जो कीन्हा॥1॥भावार्थ:- मेघनाद से उसने जो कुछ कहा, उसे उसने (मेघनाद ने) मानो पहले से ही कर रखा था (अर्थात्‌ रावण के कहने भर  ......

बालकांड दोहा 184

Filed under: Balkand
चौपाई :बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥1॥भावार्थ:- पराए धन और पराई स्त्री पर मन चलाने वाले, दुष्ट, चोर और जुआरी बहुत बढ़ गए। लोग माता-पिता और देवताओं को नहीं मानते थे और   ......

बालकांड दोहा 185

Filed under: Balkand
चौपाई :बैठे सुर सब करहिं बिचारा। कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा॥पुर बैकुंठ जान कह कोई। कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई॥1॥भावार्थ:- सब देवता बैठकर विचार करने लगे कि प्रभु को कहाँ पावें ताकि उनके सामने पुकार (फरियाद) करें। कोई बैकुंठपुरी जान  ......

बालकांड दोहा 186

Filed under: Balkand
छन्द :जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता॥पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई॥1॥भावार्थ:- हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देन  ......

बालकांड दोहा 187

Filed under: Balkand
चौपाई :जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥1॥भावार्थ:- हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और उदार (पवित्र)  ......

बालकांड दोहा 188

Filed under: Balkand
चौपाई :गए देव सब निज निज धामा। भूमि सहित मन कहुँ बिश्रामा॥जो कछु आयसु ब्रह्माँ दीन्हा। हरषे देव बिलंब न कीन्हा॥1॥भावार्थ:- सब देवता अपने-अपने लोक को गए। पृथ्वी सहित सबके मन को शांति मिली। ब्रह्माजी ने जो कुछ आज्ञा दी, उससे देवता बहु  ......

बालकांड दोहा 189

Filed under: Balkand
चौपाई :एक बार भूपति मन माहीं। भै गलानि मोरें सुत नाहीं॥गुर गृह गयउ तुरत महिपाला। चरन लागि करि बिनय बिसाला॥1॥भावार्थ:- एक बार राजा के मन में बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नहीं है। राजा तुरंत ही गुरु के घर गए और चरणों में प्रणाम कर बहुत   ......

बालकांड दोहा 190

Filed under: Balkand
चौपाई :तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं। कौसल्यादि तहाँ चलि आईं॥अर्ध भाग कौसल्यहि दीन्हा। उभय भाग आधे कर कीन्हा॥1॥भावार्थ:- उसी समय राजा ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया। कौसल्या आदि सब (रानियाँ) वहाँ चली आईं। राजा ने (पायस का) आधा भा  ......

बालकांड दोहा 191

Filed under: Balkand
चौपाई :नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥1॥भावार्थ:- पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बह  ......

बालकांड दोहा 192

Filed under: Balkand
छन्द :भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥1॥भावार्थ:- दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हि  ......

बालकांड दोहा 193

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं सब रानी॥हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥1॥भावार्थ:-बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ   ......

बालकांड दोहा 194

Filed under: Balkand
चौपाई :ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई॥1॥भावार्थ:- ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया। जिस प्रकार से वह सजाया गया, उसका तो वर्णन ही नहीं हो सकता। आकाश से फूलों की व  ......

बालकांड दोहा 195

Filed under: Balkand
चौपाई :कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ॥वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा॥1॥भावार्थ:-कैकेयी और सुमित्रा- इन दोनों ने भी सुंदर पुत्रों को जन्म दिया। उस सुख, सम्पत्ति, समय और समाज का वर्णन सरस्वती और सर्पों क  ......

बालकांड दोहा 196

Filed under: Balkand
चौपाई :यह रहस्य काहूँ नहिं जाना। दिनमनि चले करत गुनगाना॥देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा॥1॥भावार्थ:- यह रहस्य किसी ने नहीं जाना। सूर्यदेव (भगवान श्री रामजी का) गुणगान करते हुए चले। यह महोत्सव देखकर देवता, मुनि और न  ......

बालकांड दोहा 197

Filed under: Balkand
चौपाई :कछुक दिवस बीते एहि भाँती। जात न जानिअ दिन अरु राती॥नामकरन कर अवसरु जानी। भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी॥1॥भावार्थ:-इस प्रकार कुछ दिन बीत गए। दिन और रात जाते हुए जान नहीं पड़ते। तब नामकरण संस्कार का समय जानकर राजा ने ज्ञानी मुनि श्र  ......

बालकांड दोहा 198

Filed under: Balkand
चौपाई :धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्व नृप तव सुत चारी॥मुनि धन जन सरबस सिव प्राना। बाल केलि रस तेहिं सुख माना॥1॥भावार्थ:- गुरुजी ने हृदय में विचार कर ये नाम रखे (और कहा-) हे राजन्‌! तुम्हारे चारों पुत्र वेद के तत्त्व (साक्षात्‌ परा  ......

बालकांड दोहा 199

Filed under: Balkand
चौपाई :काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कंज बारिद गंभीरा॥नअरुन चरन पंकज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥1॥भावार्थ:- उनके नीलकमल और गंभीर (जल से भरे हुए) मेघ के समान श्याम शरीर में करोड़ों कामदेवों की शोभा है। लाल-लाल चरण कमलों के नखों   ......

बालकांड दोहा 200

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि राम जगत पितु माता। कोसलपुर बासिन्ह सुखदाता॥जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी। तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी॥1॥भावार्थ:- इस प्रकार (सम्पूर्ण) जगत के माता-पिता श्री रामजी अवधपुर के निवासियों को सुख देते हैं, जिन्होंने श्री राम  ......

बालकांड दोहा 201

Filed under: Balkand
चौपाई :एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए॥निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥1॥भावार्थ:- एक बार माता ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके पालने पर पौढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की  ......

बालकांड दोहा 202

Filed under: Balkand
चौपाई :अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन॥काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ॥1॥भावार्थ:- अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव द  ......

बालकांड दोहा 203

Filed under: Balkand
चौपाई :बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा। अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा॥कछुक काल बीतें सब भाई। बड़े भए परिजन सुखदाई॥1॥भावार्थ:- भगवान ने बहुत प्रकार से बाललीलाएँ कीं और अपने सेवकों को अत्यन्त आनंद दिया। कुछ समय बीतने पर चारों भाई बड़े होकर क  ......

बालकांड दोहा 204

Filed under: Balkand
चौपाई :बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए॥जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी की बहुत ही सरल (भोली) और सुंदर (मनभावनी) बाललीलाओं का सरस्वती, शेषजी, शिवजी और वेदों ने गान किय  ......

बालकांड दोहा 205

Filed under: Balkand
चौपाई :बंधु सखा सँग लेहिं बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई॥पावन मृग मारहिं जियँ जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी भाइयों और इष्ट मित्रों को बुलाकर साथ ले लेते हैं और नित्य वन में जाकर शिकार खेलते हैं।   ......

बालकांड दोहा 206

Filed under: Balkand
चौपाई :यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई॥बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहिं बिपिन सुभ आश्रम जानी॥1॥भावार्थ:- यह सब चरित्र मैंने गाकर (बखानकर) कहा। अब आगे की कथा मन लगाकर सुनो। ज्ञानी महामुनि विश्वामित्रजी वन में शुभ आश  ......

बालकांड दोहा 207

Filed under: Balkand
चौपाई :मुनि आगमन सुना जब राजा। मिलन गयउ लै बिप्र समाजा॥करि दंडवत मुनिहि सनमानी। निज आसन बैठारेन्हि आनी॥1॥भावार्थ:- राजा ने जब मुनि का आना सुना, तब वे ब्राह्मणों के समाज को साथ लेकर मिलने गए और दण्डवत्‌ करके मुनि का सम्मान करते हुए उ  ......

बालकांड दोहा 208

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि राजा अति अप्रिय बानी। हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी॥चौथेंपन पायउँ सुत चारी। बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी॥1॥भावार्थ:- इस अत्यन्त अप्रिय वाणी को सुनकर राजा का हृदय काँप उठा और उनके मुख की कांति फीकी पड़ गई। (उन्होंने कहा-) हे ब  ......

बालकांड दोहा 209

Filed under: Balkand
चौपाई :अरुन नयन उर बाहु बिसाला। नील जलज तनु स्याम तमाला॥कटि पट पीत कसें बर भाथा। रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा॥1॥भावार्थ:- भगवान के लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं, नील कमल और तमाल के वृक्ष की तरह श्याम शरीर है, कमर में पीताम  ......

बालकांड दोहा 210

Filed under: Balkand
चौपाई :प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई॥होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी॥1॥भावार्थ:- सबेरे श्री रघुनाथजी ने मुनि से कहा- आप जाकर निडर होकर यज्ञ कीजिए। यह सुनकर सब मुनि हवन करने लगे। आप (श्री रामजी) यज  ......

बालकांड दोहा 211

Filed under: Balkand
छन्द :परसत पद पावन सोकनसावन प्रगट भई तपपुंज सही।देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही॥अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥1॥भावार्थ:- श्री रामजी के पवित्र और शोक क  ......

बालकांड दोहा 212

Filed under: Balkand
चौपाई :चले राम लछिमन मुनि संगा। गए जहाँ जग पावनि गंगा॥गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई॥1॥भावार्थ:- श्री रामजी और लक्ष्मणजी मुनि के साथ चले। वे वहाँ गए, जहाँ जगत को पवित्र करने वाली गंगाजी थीं। महाराज गाधि के पुत्र व  ......

बालकांड दोहा 213

Filed under: Balkand
चौपाई :बनइ न बरनत नगर निकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई॥चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी॥1॥भावार्थ:- नगर की सुंदरता का वर्णन करते नहीं बनता। मन जहाँ जाता है, वहीं लुभा जाता (रम जाता) है। सुंदर बाजार है, मणियों से ब  ......

बालकांड दोहा 214

Filed under: Balkand
चौपाई :सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा॥बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रख संकुल सब काला॥1॥भावार्थ:- राजमहल के सब दरवाजे (फाटक) सुंदर हैं, जिनमें वज्र के (मजबूत अथवा हीरों के चमकते हुए) किवाड़ लगे हैं। वहाँ (मातहत) राजाओं, न  ......

बालकांड दोहा 215

Filed under: Balkand
चौपाई :कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा। दीन्हि असीस मुदित मुनिनाथा॥बिप्रबृंद सब सादर बंदे। जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे॥1॥भावार्थ:- राजा ने मुनि के चरणों पर मस्तक रखकर प्रणाम किया। मुनियों के स्वामी विश्वामित्रजी ने प्रसन्न होकर आशीर्वा  ......

बालकांड दोहा 216

Filed under: Balkand
चौपाई :कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक॥ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि की सोइ आवा॥1॥भावार्थ:- हे नाथ! कहिए, ये दोनों सुंदर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक? अथवा जिसका वेदों ने ‘नेति’ कह  ......

बालकांड दोहा 217

Filed under: Balkand
चौपाई :मुनि तव चरन देखि कह राऊ। कहि न सकउँ निज पुन्य प्रभाऊ॥सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता। आनँदहू के आनँद दाता॥1॥भावार्थ:- राजा ने कहा- हे मुनि! आपके चरणों के दर्शन कर मैं अपना पुण्य प्रभाव कह नहीं सकता। ये सुंदर श्याम और गौर वर्ण के दोन  ......

बालकांड दोहा 218

Filed under: Balkand
चौपाई :लखन हृदयँ लालसा बिसेषी। जाइ जनकपुर आइअ देखी॥प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं। प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं॥1॥भावार्थ:- लक्ष्मणजी के हृदय में विशेष लालसा है कि जाकर जनकपुर देख आवें, परन्तु प्रभु श्री रामचन्द्रजी का डर है और  ......

बालकांड दोहा 219

Filed under: Balkand
चौपाई :मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥बालक बृंद देखि अति सोभा। लगे संग लोचन मनु लोभा॥1॥भावार्थ:- सब लोकों के नेत्रों को सुख देने वाले दोनों भाई मुनि के चरणकमलों की वंदना करके चले। बालकों के झुंड इन (के सौंदर्य) की   ......

बालकांड दोहा 220

Filed under: Balkand
चौपाई :देखन नगरु भूपसुत आए। समाचार पुरबासिन्ह पाए॥धाए धाम काम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लागी॥1॥भावार्थ:- जब पुरवासियों ने यह समाचार पाया कि दोनों राजकुमार नगर देखने के लिए आए हैं, तब वे सब घर-बार और सब काम-काज छोड़कर ऐसे दौड़े मा  ......

बालकांड दोहा 221

Filed under: Balkand
चौपाई :कहहु सखी अस को तनु धारी। जो न मोह यह रूप निहारी॥कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी। जो मैं सुना सो सुनहु सयानी॥1॥भावार्थ:- हे सखी! (भला) कहो तो ऐसा कौन शरीरधारी होगा, जो इस रूप को देखकर मोहित न हो जाए (अर्थात यह रूप जड़-चेतन सबको मोहित करने   ......

बालकांड दोहा 222

Filed under: Balkand
चौपाई :देखि राम छबि कोउ एक कहई। जोगु जानकिहि यह बरु अहई॥जौं सखि इन्हहि देख नरनाहू। पन परिहरि हठि करइ बिबाहू॥1॥भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी की छबि देखकर कोई एक (दूसरी सखी) कहने लगी- यह वर जानकी के योग्य है। हे सखी! यदि कहीं राजा इन्हें दे  ......

बालकांड दोहा 223

Filed under: Balkand
चौपाई :बोली अपर कहेहु सखि नीका। एहिं बिआह अति हित सबही का।कोउ कह संकर चाप कठोरा। ए स्यामल मृदु गात किसोरा॥1॥भावार्थ:- दूसरी ने कहा- हे सखी! तुमने बहुत अच्छा कहा। इस विवाह से सभी का परम हित है। किसी ने कहा- शंकरजी का धनुष कठोर है और ये स  ......

बालकांड दोहा 224

Filed under: Balkand
चौपाई :पुर पूरब दिसि गे दोउ भाई। जहँ धनुमख हित भूमि बनाई॥अति बिस्तार चारु गच ढारी। बिमल बेदिका रुचिर सँवारी॥1॥भावार्थ:- दोनों भाई नगर के पूरब ओर गए, जहाँ धनुषयज्ञ के लिए (रंग) भूमि बनाई गई थी। बहुत लंबा-चौड़ा सुंदर ढाला हुआ पक्का आँगन   ......

बालकांड दोहा 225

Filed under: Balkand
चौपाई :सिसु सब राम प्रेमबस जाने। प्रीति समेत निकेत बखाने॥निज निज रुचि सब लेहिं बोलाई। सहित सनेह जाहिं दोउ भाई॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी ने सब बालकों को प्रेम के वश जानकर (यज्ञभूमि के) स्थानों की प्रेमपूर्वक प्रशंसा की। (इससे बा  ......

बालकांड दोहा 226

Filed under: Balkand
चौपाई :निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा। सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा॥कहत कथा इतिहास पुरानी। रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी॥1॥भावार्थ:- रात्रि का प्रवेश होते ही (संध्या के समय) मुनि ने आज्ञा दी, तब सबने संध्यावंदन किया। फिर प्राचीन कथाएँ तथा   ......

बालकांड दोहा 227

Filed under: Balkand
चौपाई :सकल सौच करि जाइ नहाए। नित्य निबाहि मुनिहि सिर नाए॥समय जानि गुर आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोउ भाई॥1॥भावार्थ:- सब शौचक्रिया करके वे जाकर नहाए। फिर (संध्या-अग्निहोत्रादि) नित्यकर्म समाप्त करके उन्होंने मुनि को मस्तक नवाया। (पू  ......

बालकांड दोहा 228

Filed under: Balkand
चौपाई :चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥तेहि अवसर सीता तहँ आई। गिरिजा पूजन जननि पठाई॥1॥भावार्थ:- चारों ओर दृष्टि डालकर और मालियों से पूछकर वे प्रसन्न मन से पत्र-पुष्प लेने लगे। उसी समय सीताजी वहाँ आईं। माता ने उ  ......

बालकांड दोहा 229

Filed under: Balkand
चौपाई :देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥1॥भावार्थ:- (उसने कहा-) दो राजकुमार बाग देखने आए हैं। किशोर अवस्था के हैं और सब प्रकार से सुंदर हैं। वे साँवले और गोरे (रंग के) ह  ......

बालकांड दोहा 230

Filed under: Balkand
चौपाई :कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही। मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही॥1॥भावार्थ:- कंकण (हाथों के कड़े), करधनी और पायजेब के शब्द सुनकर श्री रामचन्द्रजी हृदय में विचार कर लक्ष्मण से कहत  ......

बालकांड दोहा 231

Filed under: Balkand
चौपाई :तात जनकतनया यह सोई। धनुषजग्य जेहि कारन होई॥पूजन गौरि सखीं लै आईं। करत प्रकासु फिरइ फुलवाईं॥1॥भावार्थ:- हे तात! यह वही जनकजी की कन्या है, जिसके लिए धनुषयज्ञ हो रहा है। सखियाँ इसे गौरी पूजन के लिए ले आई हैं। यह फुलवाड़ी में प्रक  ......

बालकांड दोहा 232

Filed under: Balkand
चौपाई :चितवति चकित चहूँ दिसि सीता। कहँ गए नृप किसोर मनु चिंता॥जहँ बिलोक मृग सावक नैनी। जनु तहँ बरिस कमल सित श्रेनी॥1॥भावार्थ:- सीताजी चकित होकर चारों ओर देख रही हैं। मन इस बात की चिन्ता कर रहा है कि राजकुमार कहाँ चले गए। बाल मृगनयनी  ......

बालकांड दोहा 233

Filed under: Balkand
चौपाई :सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥भावार्थ:- दोनों सुंदर भाई शोभा की सीमा हैं। उनके शरीर की आभा नीले और पीले कमल की सी है। सिर पर सुंदर मोरपंख सुशोभित हैं। उनके बीच  ......

बालकांड दोहा 234

Filed under: Balkand
चौपाई :धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी॥बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू॥1॥भावार्थ:- एक चतुर सखी धीरज धरकर, हाथ पकड़कर सीताजी से बोली- गिरिजाजी का ध्यान फिर कर लेना, इस समय राजकुमार को क्यों नहीं देख लेत  ......

बालकांड दोहा 235

Filed under: Balkand
चौपाई :जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति॥प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी॥1॥भावार्थ:- शिवजी के धनुष को कठोर जानकर वे विसूरती (मन में विलाप करती) हुई हृदय में श्री रामजी की साँवली मूर्ति को रखकर चलीं।   ......

बालकांड दोहा 236

Filed under: Balkand
चौपाई :सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥1॥भावार्थ:- हे (भक्तों को मुँहमाँगा) वर देने वाली! हे त्रिपुर के शत्रु शिवजी की प्रिय पत्नी! आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ   ......

बालकांड दोहा 237

Filed under: Balkand
चौपाई :हृदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई॥राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं॥1॥भावार्थ:- हृदय में सीताजी के सौंदर्य की सराहना करते हुए दोनों भाई गुरुजी के पास गए। श्री रामचन्द्रजी ने विश्वामित्र से सब कुछ क  ......

बालकांड दोहा 238

Filed under: Balkand
चौपाई :घटइ बढ़इ बिरहिनि दुखदाई। ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई॥कोक सोकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा तोही॥1॥भावार्थ:- फिर यह घटता-बढ़ता है और विरहिणी स्त्रियों को दुःख देने वाला है, राहु अपनी संधि में पाकर इसे ग्रस लेता है। चकवे क  ......

बालकांड दोहा 239

Filed under: Balkand
चौपाई :नृप सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम भारी॥कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा अवसाना॥1॥भावार्थ:- सब राजा रूपी तारे उजाला (मंद प्रकाश) करते हैं, पर वे धनुष रूपी महान अंधकार को हटा नहीं सकते। रात्रि का अंत होने से जैसे क  ......

बालकांड दोहा 240

Filed under: Balkand
चौपाई :सीय स्वयंबरू देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥भावार्थ:- चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही   ......

बालकांड दोहा 241

Filed under: Balkand
चौपाई :राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥1॥भावार्थ:- उसी समय राजकुमार (राम और लक्ष्मण) वहाँ आए। (वे ऐसे सुंदर हैं) मानो साक्षात मनोहरता ही उनके शरीरों पर छा रही हो। सुंदर साँवल  ......

बालकांड दोहा 242

Filed under: Balkand
चौपाई :बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥जनक जाति अवलोकहिं कैसें। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें॥1॥भावार्थ:- विद्वानों को प्रभु विराट रूप में दिखाई दिए, जिसके बहुत से मुँह, हाथ, पैर, नेत्र और सिर हैं। जनकजी के सजातीय   ......

बालकांड दोहा 243

Filed under: Balkand
चौपाई :सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1॥भावार्थ:- दोनों मूर्तियाँ स्वभाव से ही (बिना किसी बनाव-श्रृंगार के) मन को हरने वाली हैं। करोड़ों कामदेवों की उपमा भी उनके लिए तुच्छ है।   ......

बालकांड दोहा 244

Filed under: Balkand
चौपाई :कटि तूनीर पीत पट बाँधें। कर सर धनुष बाम बर काँधें॥पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि छाए॥1॥भावार्थ:- कमर में तरकस और पीताम्बर बाँधे हैं। (दाहिने) हाथों में बाण और बाएँ सुंदर कंधों पर धनुष तथा पीले यज्ञोपवीत (जनेऊ) सुशोभ  ......

बालकांड दोहा 245

Filed under: Balkand
चौपाई :प्रभुहि देखि सब नृप हियँ हारे। जनु राकेश उदय भएँ तारे॥असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं॥1॥भावार्थ:- प्रभु को देखकर सब राजा हृदय में ऐसे हार गए (निराश एवं उत्साहहीन हो गए) जैसे पूर्ण चन्द्रमा के उदय होने पर ता  ......

बालकांड दोहा 246

Filed under: Balkand
चौपाई :ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई। मन मोदकन्हि कि भूख बुताई॥सिख हमारि सुनि परम पुनीता। जगदंबा जानहु जियँ सीता॥1॥भावार्थ:- गाल बजाकर व्यर्थ ही मत मरो। मन के लड्डुओं से भी कहीं भूख बुझती है? हमारी परम पवित्र (निष्कपट) सीख को सुनकर सीताज  ......

बालकांड दोहा 247

Filed under: Balkand
चौपाई :सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी॥उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥1॥भावार्थ:- रूप और गुणों की खान जगज्जननी जानकीजी की शोभा का वर्णन नहीं हो सकता। उनके लिए मुझे (काव्य की) सब उपमाएँ तुच्छ लगती   ......

बालकांड दोहा 248

Filed under: Balkand
चौपाई :चलीं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी॥सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छबि भारी॥1॥भावार्थ:- सयानी सखियाँ सीताजी को साथ लेकर मनोहर वाणी से गीत गाती हुई चलीं। सीताजी के नवल शरीर पर सुंदर साड़ी सुशोभित है। जगज्जननी  ......

बालकांड दोहा 249

Filed under: Balkand
चौपाई :राम रूपु अरु सिय छबि देखें। नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें॥सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं। बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं॥1॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी का रूप और सीताजी की छबि देखकर स्त्री-पुरुषों ने पलक मारना छोड़ दिया (सब एकटक उन्हीं को   ......

बालकांड दोहा 250

Filed under: Balkand
चौपाई :नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू॥रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे॥1॥भावार्थ:- राजाओं की भुजाओं का बल चन्द्रमा है, शिवजी का धनुष राहु है, वह भारी है, कठोर है, यह सबको विदित है। बड़े भारी योद्धा   ......

बालकांड दोहा 251

Filed under: Balkand
चौपाई :भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥डगइ न संभु सरासनु कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥1॥भावार्थ:- तब दस हजार राजा एक ही बार धनुष को उठाने लगे, तो भी वह उनके टाले नहीं टलता। शिवजी का वह धनुष कैसे नहीं डिगता था, जैसे कामी पुरु  ......

बालकांड दोहा 252

Filed under: Balkand
चौपाई :कहहु काहि यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा॥रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई॥1॥भावार्थ:- कहिए, यह लाभ किसको अच्छा नहीं लगता, परन्तु किसी ने भी शंकरजी का धनुष नहीं चढ़ाया। अरे भाई! चढ़ाना और तोड़ना तो दूर रहा, कोई त  ......

बालकांड दोहा 253

Filed under: Balkand
चौपाई :रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि जानी॥1॥भावार्थ:- रघुवंशियों में कोई भी जहाँ होता है, उस समाज में ऐसे वचन कोई नहीं कहता, जैसे अनुचित वचन रघुकुल शिरोमणि श्री रा  ......

बालकांड दोहा 254

Filed under: Balkand
चौपाई :लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज डोले॥सकल लोग सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने॥1॥भावार्थ:- ज्यों ही लक्ष्मणजी क्रोध भरे वचन बोले कि पृथ्वी डगमगा उठी और दिशाओं के हाथी काँप गए। सभी लोग और सब राजा डर गए। सीताज  ......

बालकांड दोहा 255

Filed under: Balkand
चौपाई :नृपन्ह केरि आसा निसि नासी। बचन नखत अवली न प्रकासी॥मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने॥1॥भावार्थ:- राजाओं की आशा रूपी रात्रि नष्ट हो गई। उनके वचन रूपी तारों के समूह का चमकना बंद हो गया। (वे मौन हो गए)। अभिमानी राजा र  ......

बालकांड दोहा 256

Filed under: Balkand
चौपाई :सखि सब कौतुक देख निहारे। जेउ कहावत हितू हमारे॥कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि नाहीं॥1॥भावार्थ:- हे सखी! ये जो हमारे हितू कहलाते हैं, वे भी सब तमाशा देखने वाले हैं। कोई भी (इनके) गुरु विश्वामित्रजी को समझाकर नहीं कह  ......

बालकांड दोहा 257

Filed under: Balkand
चौपाई :काम कुसुम धनु सायक लीन्हे। सकल भुवन अपनें बस कीन्हे॥देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुषु राम सुनु रानी॥1॥भावार्थ:- कामदेव ने फूलों का ही धनुष-बाण लेकर समस्त लोकों को अपने वश में कर रखा है। हे देवी! ऐसा जानकर संदेह त्याग दीजिए।   ......

बालकांड दोहा 258

Filed under: Balkand
चौपाई :नीकें निरखि नयन भरि सोभा। पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा॥अहह तात दारुनि हठ ठानी। समुझत नहिं कछु लाभु न हानी॥1॥ भावार्थ:- अच्छी तरह नेत्र भरकर श्री रामजी की शोभा देखकर, फिर पिता के प्रण का स्मरण करके सीताजी का मन क्षुब्ध हो उठ  ......

बालकांड दोहा 259

Filed under: Balkand
चौपाई :गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निसा अवलोकी॥लोचन जलु रह लोचन कोना। जैसें परम कृपन कर सोना॥1॥ भावार्थ:- सीताजी की वाणी रूपी भ्रमरी को उनके मुख रूपी कमल ने रोक रखा है। लाज रूपी रात्रि को देखकर वह प्रकट नहीं हो रही है। नेत्  ......

बालकांड दोहा 260

Filed under: Balkand
चौपाई :दिसिकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला॥रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा॥1॥ भावार्थ:- हे दिग्गजो! हे कच्छप! हे शेष! हे वाराह! धीरज धरकर पृथ्वी को थामे रहो, जिससे यह हिलने न पावे। श्री रामचन्द्रजी शि  ......

बालकांड दोहा 261

Filed under: Balkand
चौपाई :देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तड़ागा॥1॥ भावार्थ:- उन्होंने जानकीजी को बहुत ही विकल देखा। उनका एक-एक क्षण कल्प के समान बीत रहा था। यदि प्यासा आदमी पानी के बिना   ......

बालकांड दोहा 262

Filed under: Balkand
चौपाई :प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे॥कौसिकरूप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥1॥ भावार्थ:- प्रभु ने धनुष के दोनों टुकड़े पृथ्वी पर डाल दिए। यह देखकर सब लोग सुखी हुए। विश्वामित्र रूपी पवित्र समुद्र में, जि  ......

बालकांड दोहा 263

Filed under: Balkand
चौपाई :झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई॥बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए॥1॥ भावार्थ:- झाँझ, मृदंग, शंख, शहनाई, भेरी, ढोल और सुहावने नगाड़े आदि बहुत प्रकार के सुंदर बाजे बज रहे हैं। जहाँ-तहाँ युवतियाँ मं  ......

बालकांड दोहा 264

Filed under: Balkand
चौपाई :सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥1॥ भावार्थ:- सखियों के बीच में सीताजी कैसी शोभित हो रही हैं, जैसे बहुत सी छवियों के बीच में महाछवि हो। करकमल में सुंदर जयमा  ......

बालकांड दोहा 265

Filed under: Balkand
चौपाई :पुर अरु ब्योम बाजने बाजे। खल भए मलिन साधु सब राजे॥सुर किंनर नर नाग मुनीसा। जय जय जय कहि देहिं असीसा॥1॥ भावार्थ:- नगर और आकाश में बाजे बजने लगे। दुष्ट लोग उदास हो गए और सज्जन लोग सब प्रसन्न हो गए। देवता, किन्नर, मनुष्य, नाग और मु  ......

बालकांड दोहा 266

Filed under: Balkand
चौपाई :तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन माखे॥उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे॥1॥ भावार्थ:- उस समय सीताजी को देखकर कुछ राजा लोग ललचा उठे। वे दुष्ट, कुपूत और मूढ़ राजा मन में बहुत तमतमाए। वे अभागे उठ-उठकर, कवच पहन  ......

बालकांड दोहा 267

Filed under: Balkand
चौपाई :बैनतेय बलि जिमि चह कागू। जिमि ससु चहै नाग अरि भागू॥जिमि चह कुसल अकारन कोही। सब संपदा चहै सिवद्रोही॥1॥ भावार्थ:- जैसे गरुड़ का भाग कौआ चाहे, सिंह का भाग खरगोश चाहे, बिना कारण ही क्रोध करने वाला अपनी कुशल चाहे, शिवजी से विरोध करन  ......

बालकांड दोहा 268

Filed under: Balkand
चौपाई :खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं॥तेहिं अवसर सुनि सिवधनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥1॥ भावार्थ:- खलबली देखकर जनकपुरी की स्त्रियाँ व्याकुल हो गईं और सब मिलकर राजाओं को गालियाँ देने लगीं। उसी मौके पर श  ......

बालकांड दोहा 269

Filed under: Balkand
चौपाई :देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला॥पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा॥1॥ भावार्थ:- परशुरामजी का भयानक वेष देखकर सब राजा भय से व्याकुल हो उठ खड़े हुए और पिता सहित अपना नाम कह-कहकर सब दंडवत प्रणाम करन  ......

बालकांड दोहा 270

Filed under: Balkand
चौपाई :समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए॥सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि डारे॥1॥ भावार्थ:- जिस कारण सब राजा आए थे, राजा जनक ने वे सब समाचार कह सुनाए। जनक के वचन सुनकर परशुरामजी ने फिरकर दूसरी ओर देखा तो धनुष के टुक  ......

बालकांड दोहा 271

Filed under: Balkand
चौपाई :नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥1॥ भावार्थ:- हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ही होगा। क्या आज्ञा है, मुझसे क्यों नहीं कहते? यह सुनकर क्रोध  ......

बालकांड दोहा 272

Filed under: Balkand
चौपाई :लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥1॥ भावार्थ:- लक्ष्मणजी ने हँसकर कहा- हे देव! सुनिए, हमारे जान में तो सभी धनुष एक से ही हैं। पुराने धनुष के तोड़ने में क्या हानि-ल  ......

बालकांड दोहा 273

Filed under: Balkand
चौपाई :बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥1॥ भावार्थ:- लक्ष्मणजी हँसकर कोमल वाणी से बोले- अहो, मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। बार-बार मुझे कुल्हाड़  ......

बालकांड दोहा 274

Filed under: Balkand
चौपाई :कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल घालकु॥भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू॥1॥ भावार्थ:- हे विश्वामित्र! सुनो, यह बालक बड़ा कुबुद्धि और कुटिल है, काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवं  ......

बालकांड दोहा 275

Filed under: Balkand
चौपाई :तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥1॥ भावार्थ:- आप तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार उसे मेरे लिए बुलाते हैं। लक्ष्मणजी के कठोर वचन सुनते ही परशुरामजी ने अप  ......

बालकांड दोहा 276

Filed under: Balkand
चौपाई :कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहिं जान बिदित संसारा॥माता पितहि उरिन भए नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें॥1॥ भावार्थ:- लक्ष्मणजी ने कहा- हे मुनि! आपके शील को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता से तो   ......

बालकांड दोहा 277

Filed under: Balkand
चौपाई :नाथ करहु बालक पर छोहु। सूध दूधमुख करिअ न कोहू॥जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तौ कि बराबरि करत अयाना॥1॥ भावार्थ:- हे नाथ ! बालक पर कृपा कीजिए। इस सीधे और दूधमुँहे बच्चे पर क्रोध न कीजिए। यदि यह प्रभु का (आपका) कुछ भी प्रभाव जानत  ......

बालकांड दोहा 278

Filed under: Balkand
चौपाई :मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया। परिहरि कोपु करिअ अब दाया॥टूट चाप नहिं जुरिहि रिसाने। बैठिअ होइहिं पाय पिराने॥1॥ भावार्थ:- हे मुनिराज! मैं आपका दास हूँ। अब क्रोध त्यागकर दया कीजिए। टूटा हुआ धनुष क्रोध करने से जुड़ नहीं जाएगा।   ......

बालकांड दोहा 279

Filed under: Balkand
चौपाई :अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना। बालक बचनु करिअ नहिं काना॥1॥ भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी दोनों हाथ जोड़कर अत्यन्त विनय के साथ कोमल और शीतल वाणी बोले- हे नाथ! सुनिए, आप तो स्वभाव से   ......

बालकांड दोहा 280

Filed under: Balkand
चौपाई :बहइ न हाथु दहइ रिस छाती। भा कुठारु कुंठित नृपघाती॥भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ। मोरे हृदयँ कृपा कसि काऊ॥1॥ भावार्थ:- हाथ चलता नहीं, क्रोध से छाती जली जाती है। (हाय!) राजाओं का घातक यह कुठार भी कुण्ठित हो गया। विधाता विपरीत हो गया,  ......

बालकांड दोहा 281

Filed under: Balkand
चौपाई :बंधु कहइ कटु संमत तोरें। तू छल बिनय करसि कर जोरें॥करु परितोषु मोर संग्रामा। नाहिं त छाड़ कहाउब रामा॥1॥ भावार्थ:- तेरा यह भाई तेरी ही सम्मति से कटु वचन बोलता है और तू छल से हाथ जोड़कर विनय करता है। या तो युद्ध में मेरा संतोष कर,   ......

बालकांड दोहा 282

Filed under: Balkand
चौपाई :देखि कुठार बान धनु धारी। भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी॥नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा। बंस सुभायँ उतरु तेहिं दीन्हा॥1॥ भावार्थ:- आपको कुठार, बाण और धनुष धारण किए देखकर और वीर समझकर बालक को क्रोध आ गया। वह आपका नाम तो जानता था, पर उ  ......

बालकांड दोहा 283

Filed under: Balkand
चौपाई:निपटहिं द्विज करि जानहि मोही। मैं जस बिप्र सुनावउँ तोही॥चाप सुवा सर आहुति जानू। कोपु मोर अति घोर कृसानू॥1॥ भावार्थ:- तू मुझे निरा ब्राह्मण ही समझता है? मैं जैसा विप्र हूँ, तुझे सुनाता हूँ। धनुष को सु्रवा, बाण को आहुति और मेर  ......

बालकांड दोहा 284

Filed under: Balkand
चौपाई :देव दनुज भूपति भट नाना। समबल अधिक होउ बलवाना॥जौं रन हमहि पचारै कोऊ। लरहिं सुखेन कालु किन होऊ ॥1॥ भावार्थ:- देवता, दैत्य, राजा या और बहुत से योद्धा, वे चाहे बल में हमारे बराबर हों चाहे अधिक बलवान हों, यदि रण में हमें कोई भी ललका  ......

बालकांड दोहा 285

Filed under: Balkand
चौपाई :जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानू॥जय सुर बिप्र धेनु हितकारी। जय मद मोह कोह भ्रम हारी॥1॥ भावार्थ:- हे रघुकुल रूपी कमल वन के सूर्य! हे राक्षसों के कुल रूपी घने जंगल को जलाने वाले अग्नि! आपकी जय हो! हे देवता, ब्राह्म  ......

बालकांड दोहा 286

Filed under: Balkand
चौपाई :अति गहगहे बाजने बाजे। सबहिं मनोहर मंगल साजे॥जूथ जूथ मिलि सुमुखि सुनयनीं। करहिं गान कल कोकिलबयनीं॥1॥ भावार्थ:- खूब जोर से बाजे बजने लगे। सभी ने मनोहर मंगल साज साजे। सुंदर मुख और सुंदर नेत्रों वाली तथा कोयल के समान मधुर बोल  ......

बालकांड दोहा 287

Filed under: Balkand
चौपाई :दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहिं बोलाई॥मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला॥1॥ भावार्थ:- जाकर अयोध्या को दूत भेजो, जो राजा दशरथ को बुला लावें। राजा ने प्रसन्न होकर कहा- हे कृपालु! बहुत अच्छा! और उसी समय  ......

बालकांड दोहा 288

Filed under: Balkand
चौपाई :बेनु हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे॥कनक कलित अहिबेलि बनाई। लखि नहिं परइ सपरन सुहाई॥1॥ भावार्थ:- बाँस सब हरी-हरी मणियों (पन्ने) के सीधे और गाँठों से युक्त ऐसे बनाए जो पहचाने नहीं जाते थे (कि मणियों के हैं या   ......

बालकांड दोहा 289

Filed under: Balkand
चौपाई :रचे रुचिर बर बंदनिवारे। मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे॥मंगल कलश अनेक बनाए। ध्वज पताक पट चमर सुहाए॥1॥ भावार्थ:- ऐसे सुंदर और उत्तम बंदनवार बनाए मानो कामदेव ने फंदे सजाए हों। अनेकों मंगल कलश और सुंदर ध्वजा, पताका, परदे और चँवर बनाए  ......

बालकांड दोहा 290

Filed under: Balkand
चौपाई :पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि सुहावन॥भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई॥1॥ भावार्थ:- जनकजी के दूत श्री रामचन्द्रजी की पवित्र पुरी अयोध्या में पहुँचे। सुंदर नगर देखकर वे हर्षित हुए। राजद्वार पर   ......

बालकांड दोहा 291

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिन सनेहु समात न गाता॥प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी॥1॥ भावार्थ:- चिट्ठी सुनकर दोनों भाई पुलकित हो गए। स्नेह इतना अधिक हो गया कि वह शरीर में समाता नहीं। भरतजी का पवित्र प्र  ......

बालकांड दोहा 292

Filed under: Balkand
चौपाई :पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे॥जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे॥1॥ भावार्थ:- आपके पुत्र पूछने योग्य नहीं हैं। वे पुरुषसिंह तीनों लोकों के प्रकाश स्वरूप हैं। जिनके यश के आगे चन्द्रमा  ......

बालकांड दोहा 293

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि सरोष भृगुनायकु आए। बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए॥देखि राम बलु निज धनु दीन्हा। करिबहु बिनय गवनु बन कीन्हा॥1॥ भावार्थ:- धनुष टूटने की बात सुनकर परशुरामजी क्रोध में भरे आए और उन्होंने बहुत प्रकार से आँखें दिखलाईं। अंत मे  ......

बालकांड दोहा 294

Filed under: Balkand
चौपाई :सुनि बोले गुर अति सुखु पाई। पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई॥जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥1॥ भावार्थ:- सब समाचार सुनकर और अत्यन्त सुख पाकर गुरु बोले- पुण्यात्मा पुरुष के लिए पृथ्वी सुखों से छाई हुई है। ज  ......

बालकांड दोहा 295

Filed under: Balkand
चौपाई :राजा सबु रनिवास बोलाई। जनक पत्रिका बाचि सुनाई॥सुनि संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भूप बखानीं॥1॥ भावार्थ:- राजा ने सारे रनिवास को बुलाकर जनकजी की पत्रिका बाँचकर सुनाई। समाचार सुनकर सब रानियाँ हर्ष से भर गईं। राजा ने फिर द  ......

बालकांड दोहा 296

Filed under: Balkand
चौपाई :कहत चले पहिरें पट नाना। हरषि हने गहगहे निसाना॥समाचार सब लोगन्ह पाए। लागे घर-घर होन बधाए॥1॥ भावार्थ:- यों कहते हुए वे अनेक प्रकार के सुंदर वस्त्र पहन-पहनकर चले। आनंदित होकर नगाड़े वालों ने बड़े जोर से नगाड़ों पर चोट लगाई। सब लो  ......

बालकांड दोहा 297

Filed under: Balkand
चौपाई :जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि॥बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरूप रति मानु बिमोचनि॥1॥ भावार्थ:- बिजली की सी कांति वाली चन्द्रमुखी, हरिन के बच्चे के से नेत्र वाली और अपने सुंदर रूप से कामदेव की स्त  ......

बालकांड दोहा 298

Filed under: Balkand
चौपाई :भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गयस्यंदन साजहु जाई॥चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता॥1॥ भावार्थ:- फिर राजा ने भरतजी को बुला लिया और कहा कि जाकर घोड़े, हाथी और रथ सजाओ, जल्दी रामचन्द्रजी की बारात में चलो। यह सुनते ह  ......

बालकांड दोहा 299

Filed under: Balkand
चौपाई :बाँधें बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े॥फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पनव निसाना॥1॥ भावार्थ:- शूरता का बाना धारण किए हुए रणधीर वीर सब निकलकर नगर के बाहर आ खड़े हुए। वे चतुर अपने घोड़ों को तरह-तरह की चालो  ......

बालकांड दोहा 300

Filed under: Balkand
चौपाई :कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं॥चले मत्त गज घंट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥1। भावार्थ:- श्रेष्ठ हाथियों पर सुंदर अंबारियाँ पड़ी हैं। वे जिस प्रकार सजाई गई थीं, सो कहा नहीं जा सकता। मतवाले ह  ......

बालकांड दोहा 301

Filed under: Balkand
चौपाई :गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥1॥ भावार्थ:- हाथी गरज रहे हैं, उनके घंटों की भीषण ध्वनि हो रही है। चारों ओर रथों की घरघराहट और घोड़ों की हिनहिनाहट हो   ......

बालकांड दोहा 302

Filed under: Balkand
चौपाई :सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें॥करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ॥1॥ भावार्थ:- वशिष्ठजी के साथ (जाते हुए) राजा दशरथजी कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे देव गुरु बृहस्पतिजी के साथ इन्द्र हों। वे  ......

बालकांड दोहा 303

Filed under: Balkand
चौपाई :बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता॥चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥1॥ भावार्थ:- बारात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता। सुंदर शुभदायक शकुन हो रहे हैं। नीलकंठ पक्षी बाईं ओर चारा ले रहा है, मा  ......

बालकांड दोहा 304

Filed under: Balkand
चौपाई :मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें॥राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥1॥ भावार्थ:-स्वयं सगुण ब्रह्म जिसके सुंदर पुत्र हैं, उसके लिए सब मंगल शकुन सुलभ हैं। जहाँ श्री रामचन्द्रजी सरीखे दूल  ......

बालकांड दोहा 305

Filed under: Balkand
चौपाई :कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥ भावार्थ:- (दूध, शर्बत, ठंडाई, जल आदि से) भरकर सोने के कलश तथा जिनका वर्णन नहीं हो सकता ऐसे अमृत के समान भाँति-भाँति के सब पकवानों   ......

बालकांड दोहा 306

Filed under: Balkand
चौपाई :बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं। मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं॥बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्हि तिन्ह अति अनुरागें॥1॥ भावार्थ:- देवसुंदरियाँ फूल बरसाकर गीत गा रही हैं और देवता आनंदित होकर नगाड़े बजा रहे हैं। (अगवानी में आए   ......

बालकांड दोहा 307

Filed under: Balkand
चौपाई :निज निज बास बिलोकि बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती॥बिभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिं बखाना॥1॥ भावार्थ:- बारातियों ने अपने-अपने ठहरने के स्थान देखे तो वहाँ देवताओं के सब सुखों को सब प्रकार से सुलभ पाया। इस ऐश्वर्य का  ......

बालकांड दोहा 308

Filed under: Balkand
चौपाई :मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा। बार बार पद रज धरि सीसा॥कौसिक राउ लिए उर लाई। कहि असीस पूछी कुसलाई॥1॥ भावार्थ:- पृथ्वीपति दशरथजी ने मुनि की चरणधूलि को बारंबार सिर पर चढ़ाकर उनको दण्डवत्‌ प्रणाम किया। विश्वामित्रजी ने राजा को उठा  ......

बालकांड दोहा 309

Filed under: Balkand
चौपाई :रामहि देखि बरात जुड़ानी। प्रीति कि रीति न जाति बखानी॥नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी॥1॥ भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी को देखकर बारात शीतल हुई (राम के वियोग में सबके हृदय में जो आग जल रही थी, वह शांत हो गई)। प्र  ......

बालकांड दोहा 310

Filed under: Balkand
चौपाई :जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें देही॥इन्ह सम काहुँ न सिव अवराधे। काहुँ न इन्ह समान फल लाधे॥1॥ भावार्थ:- जनकजी के सुकृत (पुण्य) की मूर्ति जानकीजी हैं और दशरथजी के सुकृत देह धारण किए हुए श्री रामजी हैं। इन (दोनों   ......

बालकांड दोहा 311

Filed under: Balkand
चौपाई :बिबिध भाँति होइहि पहुनाई। प्रिय न काहि अस सासुर माई॥तब तब राम लखनहि निहारी। होइहहिं सब पुर लोग सुखारी॥1॥ भावार्थ:- तब उनकी अनेकों प्रकार से पहुनाई होगी। सखी! ऐसी ससुराल किसे प्यारी न होगी! तब-तब हम सब नगर निवासी श्री राम-लक्  ......

बालकांड दोहा 312

Filed under: Balkand
चौपाई :एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर भरहीं॥जे नृप सीय स्वयंबर आए। देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए॥1॥ भावार्थ:- इस प्रकार सब मनोरथ कर रही हैं और हृदय को उमंग-उमंगकर (उत्साहपूर्वक) आनंद से भर रही हैं। सीताजी के स्वयंवर में ज  ......

बालकांड दोहा 313

Filed under: Balkand
चौपाई :उपरोहितहि कहेउ नरनाहा। अब बिलंब कर कारनु काहा॥सतानंद तब सचिव बोलाए। मंगल सकल साजि सब ल्याए॥1॥ भावार्थ:- तब राजा जनक ने पुरोहित शतानंदजी से कहा कि अब देरी का क्या कारण है। तब शतानंदजी ने मंत्रियों को बुलाया। वे सब मंगल का स  ......

बालकांड दोहा 314

Filed under: Balkand
चौपाई :सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना। बरषहिं सुमन बजाइ निसाना॥सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा। चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा॥1॥ भावार्थ:- देवगण सुंदर मंगल का अवसर जानकर, नगाड़े बजा-बजाकर फूल बरसाते हैं। शिवजी, ब्रह्माजी आदि देववृन्द यूथ (टोलि  ......

बालकांड दोहा 315

Filed under: Balkand
चौपाई :जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं॥करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी॥1॥ भावार्थ:- जिनका नाम लेते ही जगत में सारे अमंगलों की जड़ कट जाती है और चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) मुट्ठी में आ जाते ह  ......

बालकांड दोहा 316

Filed under: Balkand
चौपाई :केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा॥ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए॥1॥ भावार्थ:- रामजी का मोर के कंठ की सी कांतिवाला (हरिताभ) श्याम शरीर है। बिजली का अत्यन्त निरादर करने वाले प्रकाशमय सुंदर (  ......

बालकांड दोहा 317

Filed under: Balkand
चौपाई :जेहिं बर बाजि रामु असवारा। तेहि सारदउ न बरनै पारा॥संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय लागे॥1॥ भावार्थ:- जिस श्रेष्ठ घोड़े पर श्री रामचन्द्रजी सवार हैं, उसका वर्णन सरस्वतीजी भी नहीं कर सकतीं। शंकरजी श्री रामचन्द्रज  ......

बालकांड दोहा 318

Filed under: Balkand
चौपाई :बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु मोचनि॥पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा॥1॥ भावार्थ:- सभी स्त्रियाँ चन्द्रमुखी (चन्द्रमा के समान मुख वाली) और सभी मृगलोचनी (हरिण की सी आँखों वाली) हैं और सभी अपने शर  ......

बालकांड दोहा 319

Filed under: Balkand
चौपाई :नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन रानी॥बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू॥1॥ भावार्थ:- मंगल अवसर जानकर नेत्रों के जल को रोके हुए रानी प्रसन्न मन से परछन कर रही हैं। वेदों में कहे हुए तथा कुलाचा  ......

बालकांड दोहा 320

Filed under: Balkand
चौपाई :मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं। करि बैदिक लौकिक सब रीतीं॥मिलत महा दोउ राज बिराजे। उपमा खोजि खोजि कबि लाजे॥1॥ भावार्थ:- वैदिक और लौकिक सब रीतियाँ करके जनकजी और दशरथजी बड़े प्रेम से मिले। दोनों महाराज मिलते हुए बड़े ही शोभित हुए,  ......

बालकांड दोहा 321

Filed under: Balkand
चौपाई :बहुरि कीन्हि कोसलपति पूजा। जानि ईस सम भाउ न दूजा॥कीन्हि जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव बहुताई॥1॥ भावार्थ:- फिर उन्होंने कोसलाधीश राजा दशरथजी की पूजा उन्हें ईश (महादेवजी) के समान जानकर की, कोई दूसरा भाव न था। तदन्तर (उ  ......

बालकांड दोहा 322

Filed under: Balkand
चौपाई :समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए॥बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥1॥ भावार्थ:- समय देखकर वशिष्ठजी ने शतानंदजी को आदरपूर्वक बुलाया। वे सुनकर आदर के साथ आए। वशिष्ठजी ने कहा- अब जाकर राजकुमारी क  ......

बालकांड दोहा 323

Filed under: Balkand
चौपाई :सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत मनोहरताई॥आवत दीखि बरातिन्ह सीता। रूप रासि सब भाँति पुनीता॥1॥ भावार्थ:- सीताजी की सुंदरता का वर्णन नहीं हो सकता, क्योंकि बुद्धि बहुत छोटी है और मनोहरता बहुत बड़ी है। रूप की राशि और सब प्र  ......

बालकांड दोहा 324

Filed under: Balkand
चौपाई :जनक पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ बखानी॥॥सुजसु सुकृत सुख सुंदरताई। सब समेटि बिधि रची बनाई॥1॥ भावार्थ:- जनकजी की जगविख्यात पटरानी और सीताजी की माता का बखान तो हो ही कैसे सकता है। सुयश, सुकृत (पुण्य), सुख और सुंदरता सबको  ......

बालकांड दोहा 325

Filed under: Balkand
चौपाई :कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं। नयन लाभु सब सादर लेहीं॥जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी॥1॥ भावार्थ:- वर और कन्या सुंदर भाँवरें दे रहे हैं। सब लोग आदरपूर्वक (उन्हें देखकर) नेत्रों का परम लाभ ले रहे हैं। मनोहर जो  ......

बालकांड दोहा 326

Filed under: Balkand
चौपाई :जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी॥कहि न जा कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी॥1॥ भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी के विवाह की जैसी विधि वर्णन की गई, उसी रीति से सब राजकुमार विवाहे गए। दहेज की अधिकता कुछ क  ......

बालकांड दोहा 327

Filed under: Balkand
चौपाई :स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोटि मनोज लजावन॥जावक जुत पद कमल सुहाए। मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए॥1॥ भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी का साँवला शरीर स्वभाव से ही सुंदर है। उसकी शोभा करोड़ों कामदेवों को लजाने वाली है। महावर से य  ......

बालकांड दोहा 328

Filed under: Balkand
चौपाई :पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती॥परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा॥1॥ भावार्थ:- फिर बहुत प्रकार की रसोई बनी। जनकजी ने बारातियों को बुला भेजा। राजा दशरथजी ने पुत्रों सहित गमन किया। अनुपम वस्त्रो  ......

बालकांड दोहा 329

Filed under: Balkand
चौपाई :पंच कवल करि जेवन लागे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने॥1॥ भावार्थ:- सब लोग पंचकौर करके (अर्थात ‘प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा और समानाय स्वाहा’ इ  ......

बालकांड दोहा 330

Filed under: Balkand
चौपाई :नित नूतन मंगल पुर माहीं। निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं॥बड़े भोर भूपतिमनि जागे। जाचक गुन गन गावन लागे॥1॥ भावार्थ:- जनकपुर में नित्य नए मंगल हो रहे हैं। दिन और रात पल के समान बीत जाते हैं। बड़े सबेरे राजाओं के मुकुटमणि दशरथजी जा  ......

बालकांड दोहा 331

Filed under: Balkand
चौपाई :दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे॥चारि लच्छ बर धेनु मगाईं। काम सुरभि सम सील सुहाईं॥1॥ भावार्थ:- राजा ने सबको दण्डवत्‌ प्रणाम किया और प्रेम सहित पूजन करके उन्हें उत्तम आसन दिए। चार लाख उत्तम गायें मँगवा  ......

बालकांड दोहा 332

Filed under: Balkand
चौपाई :जनक सनेहु सीलु करतूती। नृपु सब भाँति सराह बिभूती॥दिन उठि बिदा अवधपति मागा। राखहिं जनकु सहित अनुरागा॥1॥ भावार्थ:- राजा दशरथजी जनकजी के स्नेह, शील, करनी और ऐश्वर्य की सब प्रकार से सराहना करते हैं। प्रतिदिन (सबेरे) उठकर अयोध्  ......

बालकांड दोहा 333

Filed under: Balkand
चौपाई :पुरबासी सुनि चलिहि बराता। बूझत बिकल परस्पर बाता॥सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने। मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने॥1॥ भावार्थ:- जनकपुरवासियों ने सुना कि बारात जाएगी, तब वे व्याकुल होकर एक-दूसरे से बात पूछने लगे। जाना सत्य है, यह सुनकर स  ......

बालकांड दोहा 334

Filed under: Balkand
चौपाई :सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई॥चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं॥1॥ भावार्थ:- इस प्रकार सब सामान सजाकर राजा जनक ने अयोध्यापुरी को भेज दिया। बारात चलेगी, यह सुनते ही सब रानियाँ ऐसी विकल हो   ......

बालकांड दोहा 335

Filed under: Balkand
चौपाई :चारिउ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर नारि नर देखन धाए॥कोउ कह चलन चहत हहिं आजू। कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू॥1॥ भावार्थ:- स्वभाव से ही सुंदर चारों भाइयों को देखने के लिए नगर के स्त्री-पुरुष दौड़े। कोई कहता है- आज ये जाना चाहते हैं। विदेह न  ......

बालकांड दोहा 336

Filed under: Balkand
चौपाई :देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं॥रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई॥1॥ भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी की छबि देखकर वे प्रेम में अत्यन्त मग्न हो गईं और प्रेम के विशेष वश होकर बार-बार चरणों ल  ......

बालकांड दोहा 337

Filed under: Balkand
चौपाई :अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी॥सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी॥1॥ भावार्थ:- ऐसा कहकर रानी चरणों को पकड़कर (चुप) रह गईं। मानो उनकी वाणी प्रेम रूपी दलदल में समा गई हो। स्नेह से सनी हुई श्रेष्ठ   ......

बालकांड दोहा 338

Filed under: Balkand
चौपाई :सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए॥ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही॥1॥ भावार्थ:- जानकी ने जिन तोता और मैना को पाल-पोसकर बड़ा किया था और सोने के पिंजड़ों में रखकर पढ़ाया था, वे व्याकुल होकर कह र  ......

बालकांड दोहा 339

Filed under: Balkand
चौपाई :बहुबिधि भूप सुता समुझाईं। नारिधरमु कुलरीति सिखाईं॥दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे॥1॥ भावार्थ:- राजा ने पुत्रियों को बहुत प्रकार से समझाया और उन्हें स्त्रियों का धर्म और कुल की रीति सिखाई। बहुत से दासी-  ......

बालकांड दोहा 340

Filed under: Balkand
चौपाई :नृप करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल मागने टेरे॥भूषन बसन बाजि गज दीन्हे। प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे॥1॥ भावार्थ:- राजा दशरथजी ने विनती करके प्रतिष्ठित जनों को लौटाया और आदर के साथ सब मँगनों को बुलवाया। उनको गहने-कपड़े, घोड़े-हाथी  ......

बालकांड दोहा 341

Filed under: Balkand
चौपाई :मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा। आसिरबादु सबहि सन पावा॥सादर पुनि भेंटे जामाता। रूप सील गुन निधि सब भ्राता॥1॥ भावार्थ:- जनकजी ने मुनि मंडली को सिर नवाया और सभी से आशीर्वाद पाया। फिर आदर के साथ वे रूप, शील और गुणों के निधान सब भाइय  ......

बालकांड दोहा 342

Filed under: Balkand
चौपाई :सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई। निज जन जानि लीन्ह अपनाई॥होहिं सहस दस सारद सेषा। करहिं कलप कोटिक भरि लेखा॥1॥ भावार्थ:- आपने मुझे सभी प्रकार से बड़ाई दी और अपना जन जानकर अपना लिया। यदि दस हजार सरस्वती और शेष हों और करोड़ों कल्पो  ......

बालकांड दोहा 343

Filed under: Balkand
चौपाई :बार बार करि बिनय बड़ाई। रघुपति चले संग सब भाई॥जनक गहे कौसिक पद जाई। चरन रेनु सिर नयनन्ह लाई॥1॥ भावार्थ:- जनकजी की बार-बार विनती और बड़ाई करके श्री रघुनाथजी सब भाइयों के साथ चले। जनकजी ने जाकर विश्वामित्रजी के चरण पकड़ लिए और   ......

बालकांड दोहा 344

Filed under: Balkand
चौपाई :हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय गाजे॥झाँझि बिरव डिंडिमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥1॥ भावार्थ:- नगाड़ों पर चोटें पड़ने लगीं, सुंदर ढोल बजने लगे। भेरी और शंख की बड़ी आवाज हो रही है, हाथी-घोड़े गरज रहे हैं। विशेष शब्द   ......

बालकांड दोहा 345

Filed under: Balkand
चौपाई :भूप भवनु तेहि अवसर सोहा। रचना देखि मदन मनु मोहा॥मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥1॥ भावार्थ:- उस समय राजमहल (अत्यन्त) शोभित हो रहा था। उसकी रचना देखकर कामदेव भी मन मोहित हो जाता था। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋद्धि-सिद  ......

बालकांड दोहा 346

Filed under: Balkand
चौपाई :मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता॥राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥ भावार्थ:- सुख और महान आनंद से विवश होने के कारण सब माताओं के शरीर शिथिल हो गए हैं, उनके चरण चलते नहीं हैं। श्री रामचन्द  ......

बालकांड दोहा 347

Filed under: Balkand
चौपाई :धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ॥सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं॥1॥ भावार्थ:- धूप के धुएँ से आकाश ऐसा काला हो गया है मानो सावन के बादल घुमड़-घुमड़कर छा गए हों। देवता कल्पवृक्ष के फूलों की माला  ......

बालकांड दोहा 348

Filed under: Balkand
चौपाई :मागध सूत बंदि नट नागर। गावहिं जसु तिहु लोक उजागर॥जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी॥1॥ भावार्थ:- मागध, सूत, भाट और चतुर नट तीनों लोकों के उजागर (सबको प्रकाश देने वाले परम प्रकाश स्वरूप) श्री रामचन्द्रजी का य  ......

बालकांड दोहा 349

Filed under: Balkand
चौपाई :करहिं आरती बारहिं बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा॥भूषन मनि पट नाना जाती। करहिं निछावरि अगनित भाँती॥1॥ भावार्थ:- वे बार-बार आरती कर रही हैं। उस प्रेम और महान आनंद को कौन कह सकता है! अनेकों प्रकार के आभूषण, रत्न और वस्त्र तथा  ......

बालकांड दोहा 350

Filed under: Balkand
चौपाई :चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ बनाए॥तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनीत पखारे॥1॥ भावार्थ:- स्वाभाविक ही सुंदर चार सिंहासन थे, जो मानो कामदेव ने ही अपने हाथ से बनाए थे। उन पर माताओं ने राजकुमारियों और राज  ......

बालकांड दोहा 351

Filed under: Balkand
चौपाई :देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥सबहि बंदि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥ भावार्थ:- मन की सभी वासनाएँ पूरी हुई जानकर देवता और पितरों का भलीभाँति पूजन किया। सबकी वंदना करके माताएँ यही वरदान माँगत  ......

बालकांड दोहा 352

Filed under: Balkand
चौपाई :जो बसिष्ट अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर कीन्ही॥भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी॥1॥ भावार्थ:- वशिष्ठजी ने जो आज्ञा दी, उसे लोक और वेद की विधि के अनुसार राजा ने आदरपूर्वक किया। ब्राह्मणों की भीड़ देखकर अप  ......

बालकांड दोहा 353

Filed under: Balkand
चौपाई :बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें। सुत संपदा राखि सब आगें॥नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा॥1॥ भावार्थ:- राजा ने अत्यन्त प्रेमपूर्ण हृदय से पुत्रों को और सारी सम्पत्ति को सामने रखकर (उन्हें स्वीकार करने के   ......

बालकांड दोहा 354

Filed under: Balkand
चौपाई :सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू॥जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे॥1॥ भावार्थ:- सब प्रकार से सबका प्रेमपूर्वक भली-भाँति आदर-सत्कार कर लेने पर राजा दशरथजी के हृदय में पूर्ण उत्साह (आन  ......

बालकांड दोहा 355

Filed under: Balkand
चौपाई :मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि॥अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥1॥ भावार्थ:- सुंदर स्त्रियाँ मंगलगान कर रही हैं। वह रात्रि सुख की मूल और मनोहारिणी हो गई। सबने आचमन करके पान खाए और फूलों की म  ......

बालकांड दोहा 356

Filed under: Balkand
चौपाई :भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग डसाए॥सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना॥1॥ भावार्थ:- राजा के स्वाभव से ही सुंदर वचन सुनकर (रानियों ने) मणियों से जड़े सुवर्ण के पलँग बिछवाए। (गद्दों पर) गो के फेन के समान स  ......

बालकांड दोहा 357

Filed under: Balkand
चौपाई :मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी॥मख रखवारी करि दुहुँ भाईं। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाईं॥1॥ भावार्थ:- हे तात! मैं बलैया लेती हूँ, मुनि की कृपा से ही ईश्वर ने तुम्हारी बहुत सी बलाओं को टाल दिया। दोनों भाइयों ने   ......

बालकांड दोहा 358

Filed under: Balkand
चौपाई :नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥1॥ भावार्थ:- नींद में भी उनका अत्यन्त सलोना मुखड़ा ऐसा सोह रहा था, मानो संध्या के समय का लाल कमल सोह रहा हो। स्त्रियाँ घर-घर जा  ......

बालकांड दोहा 359

Filed under: Balkand
चौपाई :भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठे हरषि रजायसु पाई॥देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥1॥ भावार्थ:- राजा ने देखते ही उन्हें हृदय से लगा लिया। तदनन्तर वे आज्ञा पाकर हर्षित होकर बैठ गए। श्री रामचन्द्रजी के दर्शन कर और ने  ......

बालकांड दोहा 360

Filed under: Balkand
चौपाई :सुदिन सोधि कल कंकन छोरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे॥नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं॥1॥ भावार्थ:- अच्छा दिन (शुभ मुहूर्त) शोधकर सुंदर कंकण खोले गए। मंगल, आनंद और विनोद कुछ कम नहीं हुए (अर्थात बहुत हुए)। इस प  ......

बालकांड दोहा 361

Filed under: Balkand
चौपाई :बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा बखानी॥सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ॥1॥ भावार्थ:- वामदेवजी और रघुकुल के गुरु ज्ञानी वशिष्ठजी ने फिर विश्वामित्रजी की कथा बखानकर कही। मुनि का सुंदर यश सुन  ......