Home / Articles / Balkand / बालकांड दोहा 151

बालकांड दोहा 151


चौपाई :

सुनि मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना। कृपासिंधु बोले मृदु बचना॥
जो कछु रुचि तुम्हरे मन माहीं। मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं॥1॥

भावार्थ:- (रानी की) कोमल, गूढ़ और मनोहर श्रेष्ठ वाक्य रचना सुनकर कृपा के समुद्र भगवान कोमल वचन बोले- तुम्हारे मन में जो कुछ इच्छा है, वह सब मैंने तुमको दिया, इसमें कोई संदेह न समझना॥1॥

मातु बिबेक अलौकिक तोरें। कबहुँ न मिटिहि अनुग्रह मोरें॥
बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी। अवर एक बिनती प्रभु मोरी॥2॥

भावार्थ:- हे माता! मेरी कृपा से तुम्हारा अलौकिक ज्ञान कभी नष्ट न होगा। तब मनु ने भगवान के चरणों की वंदना करके फिर कहा- हे प्रभु! मेरी एक विनती और है-॥2॥

सुत बिषइक तव पद रति होऊ। मोहि बड़ मूढ़ कहे किन कोऊ॥
मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना। मम जीवन तिमि तुम्हहि अधीना॥3॥

भावार्थ:- आपके चरणों में मेरी वैसी ही प्रीति हो जैसी पुत्र के लिए पिता की होती है, चाहे मुझे कोई बड़ा भारी मूर्ख ही क्यों न कहे। जैसे मणि के बिना साँप और जल के बिना मछली (नहीं रह सकती), वैसे ही मेरा जीवन आपके अधीन रहे (आपके बिना न रह सके)॥3॥

अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ। एवमस्तु करुनानिधि कहेऊ॥
अब तुम्ह मम अनुसासन मानी। बसहु जाइ सुरपति रजधानी॥4॥

भावार्थ:- ऐसा वर माँगकर राजा भगवान के चरण पकड़े रह गए। तब दया के निधान भगवान ने कहा- ऐसा ही हो। अब तुम मेरी आज्ञा मानकर देवराज इन्द्र की राजधानी (अमरावती) में जाकर वास करो॥4॥

सोरठा :

तहँ करि भोग बिसाल तात गएँ कछु काल पुनि।
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत॥151॥

भावार्थ:- हे तात! वहाँ (स्वर्ग के) बहुत से भोग भोगकर, कुछ काल बीत जाने पर, तुम अवध के राजा होंगे। तब मैं तुम्हारा पुत्र होऊँगा॥151॥

This article is filed under: Balkand

Next Articles

(1) बालकांड दोहा 152
(2) बालकांड दोहा 153
(3) बालकांड दोहा 154
(4) बालकांड दोहा 155
(5) बालकांड दोहा 156

Comments

Login or register to add Comments.

No comment yet. Be the first to comment on this article.