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बालकांड दोहा 141


चौपाई :

अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी॥
जेहि कारन अज अगुन अरूपा। ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा॥1॥

भावार्थ:- हे गिरिराजकुमारी! अब भगवान के अवतार का वह दूसरा कारण सुनो- मैं उसकी विचित्र कथा विस्तार करके कहता हूँ- जिस कारण से जन्मरहित, निर्गुण और रूपरहित (अव्यक्त सच्चिदानंदघन) ब्रह्म अयोध्यापुरी के राजा हुए॥1॥

जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा। बंधु समेत धरें मुनिबेषा॥
जासु चरित अवलोकि भवानी। सती सरीर रहिहु बौरानी॥2॥

भावार्थ:- जिन प्रभु श्री रामचन्द्रजी को तुमने भाई लक्ष्मणजी के साथ मुनियों का सा वेष धारण किए वन में फिरते देखा था और हे भवानी! जिनके चरित्र देखकर सती के शरीर में तुम ऐसी बावली हो गई थीं कि- ॥2॥

अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी। तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी॥
लीला कीन्हि जो तेहिं अवतारा। सो सब कहिहउँ मति अनुसारा॥3॥

भावार्थ:- अब भी तुम्हारे उस बावलेपन की छाया नहीं मिटती, उन्हीं के भ्रम रूपी रोग के हरण करने वाले चरित्र सुनो। उस अवतार में भगवान ने जो-जो लीला की, वह सब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार तुम्हें कहूँगा॥3॥

भरद्वाज सुनि संकर बानी। सकुचि सप्रेम उमा मुसुकानी॥
लगे बहुरि बरनै बृषकेतू। सो अवतार भयउ जेहि हेतू॥4॥

भावार्थ:- (याज्ञवल्क्यजी ने कहा-) हे भरद्वाज! शंकरजी के वचन सुनकर पार्वतीजी सकुचाकर प्रेमसहित मुस्कुराईं। फिर वृषकेतु शिवजी जिस कारण से भगवान का वह अवतार हुआ था, उसका वर्णन करने लगे॥4॥

दोहा :

सो मैं तुम्ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाइ।
रामकथा कलि मल हरनि मंगल करनि सुहाइ॥141॥

भावार्थ:- हे मुनीश्वर भरद्वाज! मैं वह सब तुमसे कहता हूँ, मन लगाकर सुनो। श्री रामचन्द्रजी की कथा कलियुग के पापों को हरने वाली, कल्याण करने वाली और बड़ी सुंदर है॥141॥

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