अयोध्याकांड दोहा 68
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चौपाई :अस कहि सीय बिकल भइ भारी। बचन बियोगु न सकी सँभारी॥देखि दसा रघुपति जियँ जाना। हठि राखें नहिं राखिहि प्राना॥1॥ भावार्थ:- ऐसा कहकर सीताजी बहुत ही व्याकुल हो गईं। वे वचन के वियोग को भी न सम्हाल सकीं। (अर्थात शरीर से वियोग की बात