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उत्तर काण्ड दोहा 07

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चौपाई :सासुन्ह सबनि मिली बैदेही । चरनन्हि लाग हरषु अति तेही॥देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता॥1॥ भावार्थ:- जानकीजी सब सासुओं से मिलीं और उनके चरणों में लगकर उन्हें अत्यंत हर्ष हुआ। सासुएँ कुशल पूछकर आशीष दे रही ह

उत्तर काण्ड दोहा 06

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चौपाई :भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे। दुसह बिरह संभव दुख मेटे॥सीता चरन भरत सिरु नावा। अनुज समेत परम सुख पावा॥1॥ भावार्थ:- फिर लक्ष्मणजी शत्रुघ्नजी से गले लगकर मिले और इस प्रकार विरह से उत्पन्न दुःसह दुःख का नाश किया। फिर भाई शत्रुघ्

उत्तर काण्ड दोहा 05

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चौपाई :आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा॥बामदेव बसिष्ट मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक॥1॥ भावार्थ:- भरतजी के साथ सब लोग आए। श्री रघुवीर के वियोग से सबके शरीर दुबले हो रहे हैं। प्रभु ने वामदेव, वशिष्ठ आदि मुनिश्रे

उत्तर काण्ड दोहा 04

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चौपाई :इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर॥सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा॥1॥ भावार्थ:- यहाँ (विमान पर से) सूर्य कुल रूपी कमल को प्रफुल्लित करने वाले सूर्य श्री रामजी वानरों को मनोहर नगर दिखला रहे हैं

उत्तर काण्ड दोहा 03

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चौपाई :हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए॥पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई॥1॥ भावार्थ:- इधर भरतजी भी हर्षित होकर अयोध्यापुरी में आए और उन्होंने गुरुजी को सब समाचार सुनाया! फिर राजमहल में खबर जनाई कि श्री रघुन

उत्तर काण्ड दोहा 02

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चौपाई :देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ॥मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी॥1॥भावार्थ:- उन्हें देखते ही हनुमान्‌जी अत्यंत हर्षित हुए। उनका शरीर पुलकित हो गया, नेत्रों से (प्रेमाश्रुओं का) जल बरसने लगा

उत्तर काण्ड दोहा 01

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चौपाई :रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा॥कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ॥1॥भावार्थ:- प्राणों की आधार रूप अवधि का एक ही दिन शेष रह गया। यह सोचते ही भरतजी के मन में अपार दुःख हुआ। क्या कारण हुआ कि नाथ न

उत्तरकांड शुरुआत श्लोक

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श्रीगणेशायनमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानससप्तम सोपानश्री उत्तरकाण्डश्लोक :केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नंशोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्ध