लंका काण्ड दोहा 110
Filed under:
Lanka Kand
चौपाई :तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई॥आए देव सदा स्वारथी। बचन कहहिं जनु परमारथी॥1॥ भावार्थ:-तब श्री रघुनाथजी की आज्ञा पाकर इंद्र का सारथी मातलि चरणों में सिर नवाकर (रथ लेकर) चला गया। तदनन्तर सदा के स्वार्थी देवता