अयोध्याकांड दोहा 52
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चौपाई :रघुकुलतिलक जोरि दोउ हाथा। मुदित मातु पद नायउ माथा॥दीन्हि असीस लाइ उर लीन्हे। भूषन बसन निछावरि कीन्हे॥1॥ भावार्थ:- रघुकुल तिलक श्री रामचंद्रजी ने दोनों हाथ जोड़कर आनंद के साथ माता के चरणों में सिर नवाया। माता ने आशीर्वाद द