लंका काण्ड दोहा 94
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चौपाई :आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा॥तुरत बिभीषन पाछें मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला॥1॥ भावार्थ:- अत्यंत भयानक शक्ति को आती देख और यह विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना है, श्री रामजी ने तुरंत ही