लंका काण्ड दोहा 102
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चौपाई :काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई॥मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा। राम बिभीषन तन तब देखा॥1॥ भावार्थ:- काटते ही सिरों का समूह बढ़ जाता है, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है। शत्रु मरता नहीं और परिश्रम बहुत हुआ।