लंका काण्ड दोहा 62
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चौपाई :हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥ भावार्थ:- श्री रामजी हर्षित होकर हनुमान्जी से गले मिले। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यंत ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण)