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लंका काण्ड श्लोक

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श्लोक :रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहंयोगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवंवन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥1॥ भावार्थ:- कामदे  ......

लंका काण्ड दोहा 1

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चौपाई :यह लघु जलधि तरत कति बारा। अस सुनि पुनि कह पवनकुमारा॥प्रभु प्रताप बड़वानल भारी। सोषेउ प्रथम पयोनिधि बारी॥1॥ भावार्थ:- फिर यह छोटा सा समुद्र पार करने में कितनी देर लगेगी? ऐसा सुनकर फिर पवनकुमार श्री हनुमान्‌जी ने कहा- प्र  ......

लंका काण्ड दोहा 2

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चौपाई :सैल बिसाल आनि कपि देहीं। कंदुक इव नल नील ते लेहीं॥देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना॥1॥ भावार्थ:- वानर बड़े-बड़े पहाड़ ला-लाकर देते हैं और नल-नील उन्हें गेंद की तरह ले लेते हैं। सेतु की अत्यंत सुंदर रचना द  ......

लंका काण्ड दोहा 3

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चौपाई :जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि॥1॥ भावार्थ:- जो मनुष्य (मेरे स्थापित किए हुए इन) रामेश्वरजी का दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और   ......

लंका काण्ड दोहा 4

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चौपाई :बाँधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देखि कृपानिधि के मन भावा॥चली सेन कछु बरनि न जाई। गर्जहिं मर्कट भट समुदाई॥1॥ भावार्थ:- नल-नील ने सेतु बाँधकर उसे बहुत मजबूत बनाया। देखने पर वह कृपानिधान श्री रामजी के मन को (बहुत ही) अच्छा लगा।   ......

लंका काण्ड दोहा 5

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चौपाई :अस कौतुक बिलोकि द्वौ भाई। बिहँसि चले कृपाल रघुराई॥सेन सहित उतरे रघुबीरा। कहि न जाइ कपि जूथप भीरा॥1॥ भावार्थ:- कृपालु रघुनाथजी (तथा लक्ष्मणजी) दोनों भाई ऐसा कौतुक देखकर हँसते हुए चले। श्री रघुवीर सेना सहित समुद्र के पार   ......

लंका काण्ड दोहा 6

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चौपाई :निज बिकलता बिचारि बहोरी॥ बिहँसि गयउ गृह करि भय भोरी॥मंदोदरीं सुन्यो प्रभु आयो। कौतुकहीं पाथोधि बँधायो॥1॥ भावार्थ:- फिर अपनी व्याकुलता को समझकर (ऊपर से) हँसता हुआ, भय को भुलाकर, रावण महल को गया। (जब) मंदोदरी ने सुना कि प्रभ  ......

लंका काण्ड दोहा 7

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चौपाई :नाथ दीनदयाल रघुराई। बाघउ सनमुख गएँ न खाई॥चाहिअ करन सो सब करि बीते। तुम्ह सुर असुर चराचर जीते॥1॥ भावार्थ:- हे नाथ! श्री रघुनाथजी तो दीनों पर दया करने वाले हैं। सम्मुख (शरण) जाने पर तो बाघ भी नहीं खाता। आपको जो कुछ करना चाहिए   ......

लंका काण्ड दोहा 8

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चौपाई :तब रावन मयसुता उठाई। कहै लाग खल निज प्रभुताई॥सुनु तैं प्रिया बृथा भय माना। जग जोधा को मोहि समाना॥1॥ भावार्थ:- तब रावण ने मंदोदरी को उठाया और वह दुष्ट उससे अपनी प्रभुता कहने लगा- हे प्रिये! सुन, तूने व्यर्थ ही भय मान रखा है।   ......

लंका काण्ड दोहा 9

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चौपाई :कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती। नाथ न पूर आव एहि भाँती॥बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा॥॥1॥ भावार्थ:- ये सभी मूर्ख (खुशामदी) मन्त्र ठकुरसुहाती (मुँहदेखी) कह रहे हैं। हे नाथ! इस प्रकार की बातों से पूरा नहीं पड़े  ......

लंका काण्ड दोहा 10

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चौपाई :यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा॥सुत सन कह दसकंठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई॥1॥ भावार्थ:- हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेंगे, तो जगत्‌ में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा। रावण ने गुस्से मे  ......

लंका काण्ड दोहा 11

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चौपाई :इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा॥सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी॥1॥ भावार्थ:- यहाँ श्री रघुवीर सुबेल पर्वत पर सेना की बड़ी भीड़ (बड़े समूह) के साथ उतरे। पर्वत का एक बहुत ऊँचा, परम रमणीय, समतल औ  ......

लंका काण्ड दोहा 12

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चौपाई :पूरब दिसि गिरिगुहा निवासी। परम प्रताप तेज बल रासी॥मत्त नाग तम कुंभ बिदारी। ससि केसरी गगन बन चारी॥1॥ भावार्थ:- पूर्व दिशा रूपी पर्वत की गुफा में रहने वाला, अत्यंत प्रताप, तेज और बल की राशि यह चंद्रमा रूपी सिंह अंधकार रूपी   ......

लंका काण्ड दोहा 13

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चौपाई :देखु विभीषन दच्छिन आसा। घन घमंड दामिनी बिलासा॥मधुर मधुर गरजइ घन घोरा। होइ बृष्टि जनि उपल कठोरा॥1॥ भावार्थ:- हे विभीषण! दक्षिण दिशा की ओर देखो, बादल कैसा घुमड़ रहा है और बिजली चमक रही है। भयानक बादल मीठे-मीठे (हल्के-हल्के) स  ......

लंका काण्ड दोहा 14

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चौपाई :कंप न भूमि न मरुत बिसेषा। अस्त्र सस्त्र कछु नयन न देखा।सोचहिं सब निज हृदय मझारी। असगुन भयउ भयंकर भारी॥1॥ भावार्थ:- न भूकम्प हुआ, न बहुत जोर की हवा (आँधी) चली। न कोई अस्त्र-शस्त्र ही नेत्रों से देखे। (फिर ये छत्र, मुकुट और कर्  ......

लंका काण्ड दोहा 15

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चौपाई :पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥1॥ भावार्थ:- पाताल (जिन विश्व रूप भगवान्‌ का) चरण है, ब्रह्म लोक सिर है, अन्य (बीच के सब) लोकों का विश्राम (स्थिति) जिनके अन्य भिन्  ......

लंका काण्ड दोहा 16

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चौपाई :बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना॥नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं॥1॥ भावार्थ:- पत्नी के वचन कानों से सुनकर रावण खूब हँसा (और बोला-) अहो! मोह (अज्ञान) की महिमा बड़ी बलवान्‌ है। स्त्री का स्वभाव स  ......

लंका काण्ड दोहा 17

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चौपाई :इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई॥कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई॥1॥ भावार्थ:- यहाँ (सुबेल पर्वत पर) प्रातःकाल श्री रघुनाथजी जागे और उन्होंने सब मंत्रियों को बुलाकर सलाह पूछी कि शीघ्र बताइए, अब क  ......

लंका काण्ड दोहा 18

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चौपाई :बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई॥प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥1॥ भावार्थ:- चरणों की वंदना करके और भगवान्‌ की प्रभुता हृदय में धरकर अंगद सबको सिर नवाकर चले। प्रभु के प्रताप को हृदय   ......

लंका काण्ड दोहा 19

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चौपाई :तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा॥सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥ भावार्थ:- तुरंत ही उन्होंने एक राक्षस को भेजा और रावण को अपने आने का समाचार सूचित किया। सुनते ही रावण हँसकर बोला- बुला लाओ, (देख  ......

लंका काण्ड दोहा 20

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चौपाई :कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर॥मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई॥1॥ भावार्थ:- रावण ने कहा- अरे बंदर! तू कौन है? (अंगद ने कहा-) हे दशग्रीव! मैं श्री रघुवीर का दूत हूँ। मेरे पिता से और तुमसे मित्रता थी, इ  ......

लंका काण्ड दोहा 21

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चौपाई :रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी॥कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई॥1॥ भावार्थ:- (रावण ने कहा-) अरे बंदर के बच्चे! सँभालकर बोल! मूर्ख! मुझ देवताओं के शत्रु को तूने जाना नहीं? अरे भाई! अपना और अपने ब  ......

लंका काण्ड दोहा 22

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चौपाई :सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई॥तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा॥1॥ भावार्थ:- शिव, ब्रह्मा (आदि) देवता और मुनियों के समुदाय जिनके चरणों की सेवा (करना) चाहते हैं, उनका दूत होकर मैंने कुल क  ......

लंका काण्ड दोहा 23

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चौपाई :तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद॥तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना॥1॥ भावार्थ:- अरे अंगद! सुन, तेरी सेना में बता, ऐसा कौन योद्धा है, जो मुझसे भिड़ सकेगा। तेरा मालिक तो स्त्री के वियोग म  ......

लंका काण्ड दोहा 24

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चौपाई :धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा॥नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई॥1॥ भावार्थ:- बंदर को धन्य है, जो अपने मालिक के लिए लाज छोड़कर जहाँ-तहाँ नाचता है। नाच-कूदकर, लोगों को रिझाकर, मालिक का ह  ......

लंका काण्ड दोहा 25

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चौपाई : :सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला॥जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई॥1॥ भावार्थ:-(रावण ने कहा-) अरे मूर्ख! सुन, मैं वही बलवान्‌ रावण हूँ, जिसकी भुजाओं की लीला (करामात) कैलास पर्वत जानता है। जिस  ......

लंका काण्ड दोहा 26

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चौपाई :सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु संभारि अधम अभिमानी॥सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा॥1॥ भावार्थ:- रावण के ये वचन सुनकर अंगद क्रोध सहित वचन बोले- अरे नीच अभिमानी! सँभलकर (सोच-समझकर) बोल। जिनका फरसा सहस्रबाहु की भु  ......

लंका काण्ड दोहा 27

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चौपाई :सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई॥जौं खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही॥1॥ भावार्थ:- अरे रावण! चतुराई (कपट) छोड़कर सुन। कृपा के समुद्र श्री रघुनाथजी का तू भजन क्यों नहीं करता? अरे दुष्ट! यदि त  ......

लंका काण्ड दोहा 28

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चौपाई :सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई॥नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा॥1॥ भावार्थ:- रे दुष्ट! वानरों की सहायता जोड़कर राम ने समुद्र बाँध लिया, बस, यही उसकी प्रभुता है। समुद्र को तो अनेकों पक्षी   ......

लंका काण्ड दोहा 29

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चौपाई :जरत बिलोकेउँ जबहि कपाला। बिधि के लिखे अंक निज भाला॥नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जानि बिधि गिरा असाँची॥1॥ भावार्थ:- मस्तकों के जलते समय जब मैंने अपने ललाटों पर लिखे हुए विधाता के अक्षर देखे, तब मनुष्य के हाथ से अपनी मृत्य  ......

लंका काण्ड दोहा 30

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चौपाई :अब जनि बतबढ़ाव खल करही। सुनु मम बचन मान परिहरही॥दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस बिचारि रघुबीर पठायउँ॥1॥ भावार्थ:- अरे दुष्ट! अब बतबढ़ाव मत कर, मेरा वचन सुन और अभिमान त्याग दे! हे दशमुख! मैं दूत की तरह (सन्धि करने) नहीं आया हूँ। श  ......

लंका काण्ड दोहा 31

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चौपाई :जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥ भावार्थ:- यदि ऐसा करूँ, तो भी इसमें कोई बड़ाई नहीं है। मरे हुए को मारने में कुछ भी पुरुषत्व (बहादुरी) नहीं है। वामम  ......

लंका काण्ड दोहा 32

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चौपाई :जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा॥हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना॥1॥ भावार्थ:- जब उसने श्री रामजी की निंदा की, तब तो कपिश्रेष्ठ अंगद अत्यंत क्रोधित हुए, क्योंकि (शास्त्र ऐसा कहते हैं कि) जो  ......

लंका काण्ड दोहा 33

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चौपाई :एहि बधि बेगि सुभट सब धावहु। खाहु भालु कपि जहँ जहँ पावहु॥मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई॥1॥ भावार्थ:- (रावण फिर बोला-) इसे मारकर सब योद्धा तुरंत दौड़ो और जहाँ कहीं रीछ-वानरों को पाओ, वहीं खा डालो। पृथ्वी को बं  ......

लंका काण्ड दोहा 34

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चौपाई :मैं तव दसन तोरिबे लायक। आयसु मोहि न दीन्ह रघुनायक॥असि रिस होति दसउ मुख तोरौं। लंका गहि समुद्र महँ बोरौं॥1॥ भावार्थ:- मैं तेरे दाँत तोड़ने में समर्थ हूँ। पर क्या करूँ? श्री रघुनाथजी ने मुझे आज्ञा नहीं दी। ऐसा क्रोध आता है कि   ......

लंका काण्ड दोहा 35

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चौपाई :कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे॥गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा॥1॥ भावार्थ:- अंगद का बल देखकर सब हृदय में हार गए। तब अंगद के ललकारने पर रावण स्वयं उठा। जब वह अंगद का चरण पकड़ने लगा, तब बालि कुमा  ......

लंका काण्ड दोहा 36

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चौपाई :कंत समुझि मन तजहु कुमतिही। सोह न समर तुम्हहि रघुपतिही॥रामानुज लघु रेख खचाई। सोउ नहिं नाघेहु असि मनुसाई॥1॥ भावार्थ:- हे कान्त! मन में समझकर (विचारकर) कुबुद्धि को छोड़ दो। आप से और श्री रघुनाथजी से युद्ध शोभा नहीं देता। उनक  ......

लंका काण्ड दोहा 37

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चौपाई :जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला॥कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू॥1॥ भावार्थ:- जिन्होंने खेल से ही समुद्र को बँधा लिया और जो प्रभु सेना सहित सुबेल पर्वत पर उतर पड़े, उन सूर्यकुल के ध्वजास्वर  ......

लंका काण्ड दोहा 38

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चौपाई :नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना॥बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली॥1॥ भावार्थ:- स्त्री के बाण के समान वचन सुनकर वह सबेरा होते ही उठकर सभा में चला गया और सारा भय भुलाकर अत्यंत अभिमान में फूलक  ......

लंका काण्ड दोहा 39

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चौपाई :रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए॥लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा॥1॥ भावार्थ:- जब शत्रु के समाचार प्राप्त हो गए, तब श्री रामचंद्रजी ने सब मंत्रियों को पास बुलाया (और कहा-) लंका के चार बड़े विक  ......

लंका काण्ड दोहा 40

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चौपाई :लंकाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अति अहँकारी॥देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई। बिहँसि निसाचर सेन बोलाई॥1॥ भावार्थ:- लंका में बड़ा भारी कोलाहल (कोहराम) मच गया। अत्यंत अहंकारी रावण ने उसे सुनकर कहा- वानरों की ढिठाई तो देखो! यह कहत  ......

लंका काण्ड दोहा 41

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चौपाई :कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे। मेरु के सृंगनि जनु घन बैसे॥बाजहिं ढोल निसान जुझाऊ। सुनि धुनि होइ भटन्हि मन चाऊ॥1॥ भावार्थ:- वे परकोटे के कँगूरों पर कैसे शोभित हो रहे हैं, मानो सुमेरु के शिखरों पर बादल बैठे हों। जुझाऊ ढोल और डंक  ......

लंका काण्ड दोहा 42

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चौपाई :राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा॥चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर॥1॥ भावार्थ:- श्री रामजी के प्रताप से प्रबल वानरों के झुंड राक्षस योद्धाओं के समूह के समूह मसल रहे हैं। वानर फिर   ......

लंका काण्ड दोहा 43

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चौपाई :भय आतुर कपि भागत लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे॥कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) वानर भयातुर होकर (डर के मारे घबड़ाकर) भागने लगे, यद्यपि हे उमा! आगे चलकर (वे ही) जीतेंगे। कोई कहता   ......

लंका काण्ड दोहा 44

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चौपाई :जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर। राम प्रताप सुमिरि उर अंतर॥रावन भवन चढ़े द्वौ धाई। करहिं कोसलाधीस दोहाई॥1॥ भावार्थ:- युद्ध में शत्रुओं के विरुद्ध दोनों वानर क्रुद्ध हो गए। हृदय में श्री रामजी के प्रताप का स्मरण करके द  ......

लंका काण्ड दोहा 45

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चौपाई :महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं॥कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा॥1॥ भावार्थ:- जिन बड़े-बड़े मुखियों (प्रधान सेनापतियों) को पकड़ पाते हैं, उनके पैर पकड़कर उन्हें प्रभु के पास फेंक   ......

लंका काण्ड दोहा 46

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चौपाई :प्रभु पद कमल सीस तिन्ह नाए। देखि सुभट रघुपति मन भाए॥राम कृपा करि जुगल निहारे। भए बिगतश्रम परम सुखारे॥1॥ भावार्थ:- उन्होंने प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाए। उत्तम योद्धाओं को देखकर श्री रघुनाथजी मन में बहुत प्रसन्न हुए।   ......

लंका काण्ड दोहा 47

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चौपाई :सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अंगद हनुमाना॥समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोपि कपिकुंजर धाए॥1॥ भावार्थ:- श्री रघुनाथजी सब रहस्य जान गए। उन्होंने अंगद और हनुमान्‌ को बुला लिया और सब समाचार कहकर समझाया। सुनते ही वे दोनों क  ......

लंका काण्ड दोहा 48

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चौपाई :निसा जानि कपि चारिउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी॥राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही॥1॥ भावार्थ:- रात हुई जानकर वानरों की चारों सेनाएँ (टुकड़ियाँ) वहाँ आईं, जहाँ कोसलपति श्री रामजी थे। श्री रामजी ने ज्यों ही सबको कृप  ......

लंका काण्ड दोहा 49

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चौपाई :परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥ भावार्थ:- (अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के   ......

लंका काण्ड दोहा 50

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चौपाई :कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोत बिख्याता॥कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अंगद हनूमंत बल सींवा॥1॥ भावार्थ:- (मेघनाद ने पुकारकर कहा-) समस्त लोकों में प्रसिद्ध धनुर्धर कोसलाधीश दोनों भाई कहाँ हैं? नल, नील, द्विविद, सुग्रीव  ......

लंका काण्ड दोहा 51

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चौपाई :देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवंत जनु धायउ काला॥महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥ भावार्थ:- सारी सेना को बेहाल (व्याकुल) देखकर पवनसुत हनुमान्‌ क्रोध करके ऐसे दौड़े मानो स्वयं काल दौड़ आता हो। उन्होंने तुरं  ......

लंका काण्ड दोहा 52

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चौपाई : :नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा। महि ते प्रगट होहिं जलधारा॥नाना भाँति पिसाच पिसाची। मारु काटु धुनि बोलहिं नाची॥1॥ भावार्थ:- आकाश में (ऊँचे) चढ़कर वह बहुत से अंगारे बरसाने लगा। पृथ्वी से जल की धाराएँ प्रकट होने लगीं। अनेक प्रका  ......

लंका काण्ड दोहा 53

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चौपाई :छतज नयन उर बाहु बिसाला। हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला॥इहाँ दसानन सुभट पठाए। नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए॥1॥ भावार्थ:- उनके लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं। हिमाचल पर्वत के समान उज्ज्वल (गौरवर्ण) शरीर कुछ ललाई लि  ......

लंका काण्ड दोहा 54

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चौपाई :घायल बीर बिराजहिं कैसे। कुसुमति किंसुक के तरु जैसे॥लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा। भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा॥1॥ भावार्थ:- घायल वीर कैसे शोभित हैं, जैसे फूले हुए पलास के पेड़। लक्ष्मण और मेघनाद दोनों योद्धा अत्यंत क्रोध करके   ......

लंका काण्ड दोहा 55

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चौपाई :सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू। जारइ भुवन चारिदस आसू॥सक संग्राम जीति को ताही। सेवहिं सुर नर अग जग जाही॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) हे गिरिजे! सुनो, (प्रलयकाल में) जिन (शेषनाग) के क्रोध की अग्नि चौदहों भुवनों को तुरंत ही जला डाल  ......

लंका काण्ड दोहा 56

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चौपाई :राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजनसुत बल भाषी॥उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावनु कालनेमि गृह आवा॥1॥ भावार्थ:- श्री रामजी के चरणकमलों को हृदय में रखकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी अपना बल बखानकर (अर्थात्‌ मैं अभी लिए आता हूँ, ऐसा कहकर) च  ......

लंका काण्ड दोहा 57

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चौपाई :अस कहि चला रचिसि मग माया। सर मंदिर बर बाग बनाया॥मारुतसुत देखा सुभ आश्रम। मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम॥1॥ भावार्थ:- वह मन ही मन ऐसा कहकर चला और उसने मार्ग में माया रची। तालाब, मंदिर और सुंदर बाग बनाया। हनुमान्‌जी ने सुंदर   ......

लंका काण्ड दोहा 58

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चौपाई :कपि तव दरस भइउँ निष्पापा। मिटा तात मुनिबर कर सापा॥मुनि न होइ यह निसिचर घोरा। मानहु सत्य बचन कपि मोरा॥1॥ भावार्थ:- (उसने कहा-) हे वानर! मैं तुम्हारे दर्शन से पापरहित हो गई। हे तात! श्रेष्ठ मुनि का शाप मिट गया। हे कपि! यह मुनि न  ......

लंका काण्ड दोहा 59

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चौपाई :परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक॥सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए॥1॥ भावार्थ:- बाण लगते ही हनुमान्‌जी ‘राम, राम, रघुपति’ का उच्चारण करते हुए मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। प्रिय वचन (रा  ......

लंका काण्ड दोहा 60

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चौपाई :तात कुसल कहु सुखनिधान की। सहित अनुज अरु मातु जानकी॥लकपि सब चरित समास बखाने। भए दुखी मन महुँ पछिताने॥1॥ भावार्थ:- (भरतजी बोले-) हे तात! छोटे भाई लक्ष्मण तथा माता जानकी सहित सुखनिधान श्री रामजी की कुशल कहो। वानर (हनुमान्‌जी)   ......

लंका काण्ड दोहा 61

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चौपाई :उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ॥1॥ भावार्थ:- वहाँ लक्ष्मणजी को देखकर श्री रामजी साधारण मनुष्यों के अनुसार (समान) वचन बोले- आधी रात बीत चुकी है, हनुमान्‌ नहीं  ......

लंका काण्ड दोहा 62

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चौपाई :हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥ भावार्थ:- श्री रामजी हर्षित होकर हनुमान्‌जी से गले मिले। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यंत ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण)  ......

लंका काण्ड दोहा 63

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चौपाई :भल न कीन्ह तैं निसिचर नाहा। अब मोहि आइ जगाएहि काहा॥अजहूँ तात त्यागि अभिमाना। भजहु राम होइहि कल्याना॥1॥ भावार्थ:- हे राक्षसराज! तूने अच्छा नहीं किया। अब आकर मुझे क्यों जगाया? हे तात! अब भी अभिमान छोड़कर श्री रामजी को भजो त  ......

लंका काण्ड दोहा 64

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चौपाई :महिषखाइ करि मदिरा पाना। गर्जा बज्राघात समाना॥कुंभकरन दुर्मद रन रंगा। चला दुर्ग तजि सेन न संगा॥1॥ भावार्थ:-भैंसे खाकर और मदिरा पीकर वह वज्रघात (बिजली गिरने) के समान गरजा। मद से चूर रण के उत्साह से पूर्ण कुंभकर्ण किला छोड़क  ......

लंका काण्ड दोहा 65

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चौपाई :बंधु बचन सुनि चला बिभीषन। आयउ जहँ त्रैलोक बिभूषन॥नाथ भूधराकार सरीरा। कुंभकरन आवत रनधीरा॥1॥॥ भावार्थ:- भाई के वचन सुनकर विभीषण लौट गए और वहाँ आए, जहाँ त्रिलोकी के भूषण श्री रामजी थे। (विभीषण ने कहा-) हे नाथ! पर्वत के समान (व  ......

लंका काण्ड दोहा 66

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चौपाई :उमा करत रघुपति नरलीला। खेलत गरुड़ जिमि अहिगन मीला॥भृकुटि भंग जो कालहि खाई। ताहि कि सोहइ ऐसि लराई॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! श्री रघुनाथजी वैसे ही नरलीला कर रहे हैं, जैसे गरुड़ सर्पों के समूह में मिलकर खेलता हो।   ......

लंका काण्ड दोहा 67

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चौपाई :कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा। सन्मुख चला काल जनु क्रुद्धा॥कोटि कोटि कपि धरि धरि खाई। जनु टीड़ी गिरि गुहाँ समाई॥1॥ भावार्थ:- रण के उत्साह में कुंभकर्ण विरुद्ध होकर (उनके) सामने ऐसा चला मानो क्रोधित होकर काल ही आ रहा हो। वह करोड़-  ......

लंका काण्ड दोहा 68

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चौपाई :कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥प्रथम कीन्हि प्रभु धनुष टंकोरा। रिपु दल बधिर भयउ सुनि सोरा॥1॥ भावार्थ:- हाथ में शार्गंधनुष और कमर में तरकस सजाकर श्री रघुनाथजी शत्रु सेना को दलन करने चले। प्रभु ने पहले तो ध  ......

लंका काण्ड दोहा 69

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चौपाई :कुंभकरन मन दीख बिचारी। हति छन माझ निसाचर धारी॥भा अति क्रुद्ध महाबल बीरा। कियो मृगनायक नाद गँभीरा॥1॥ भावार्थ:- कुंभकर्ण ने मन में विचार कर देखा कि श्री रामजी ने क्षण मात्र में राक्षसी सेना का संहार कर डाला। तब वह महाबली वीर  ......

लंका काण्ड दोहा 70

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चौपाई :भागे भालु बलीमुख जूथा। बृकु बिलोकि जिमि मेष बरूथा॥चले भागि कपि भालु भवानी। बिकल पुकारत आरत बानी॥1॥ भावार्थ:- यह देखकर रीछ-वानरों के झुंड ऐसे भागे जैसे भेड़िये को देखकर भेड़ों के झुंड! (शिवजी कहते हैं-) हे भवानी! वानर-भालू व्  ......

लंका काण्ड दोहा 71

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चौपाई :सभय देव करुनानिधि जान्यो। श्रवन प्रजंत सरासुन तान्यो॥बिसिख निकर निसिचर मुख भरेऊ। तदपि महाबल भूमि न परेऊ॥1॥ भावार्थ:- करुणानिधान भगवान्‌ ने देवताओं को भयभीत जाना। तब उन्होंने धनुष को कान तक तानकर राक्षस के मुख को बाणों  ......

लंका काण्ड दोहा 72

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चौपाई :दिन के अंत फिरीं द्वौ अनी। समर भई सुभटन्ह श्रम घनी॥राम कृपाँ कपि दल बल बाढ़ा। जिमि तृन पाइ लाग अति डाढ़ा॥1॥ भावार्थ:- दिन का अन्त होने पर दोनों सेनाएँ लौट पड़ीं। (आज के युद्ध में) योद्धाओं को बड़ी थकावट हुई, परन्तु श्री राम  ......

लंका काण्ड दोहा 73

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चौपाई :सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना॥डारइ परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना॥1॥ भावार्थ:- वह शक्ति, शूल, तलवार, कृपाण आदि अस्त्र, शास्त्र एवं वज्र आदि बहुत से आयुध चलाने तथा फरसे, परिघ, पत्थर आदि  ......

लंका काण्ड दोहा 74

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चौपाई :चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी॥अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी॥1॥ भावार्थ:- हे भवानी! श्री रामजी की इस सगुण लीलाओं के विषय में बुद्धि और वाणी के बल से तर्क (निर्णय) नहीं किया जा सकता  ......

लंका काण्ड दोहा 75

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चौपाई :मेघनाद कै मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी॥तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा॥1॥ भावार्थ:- मेघनाद की मूर्च्छा छूटी, (तब) पिता को देखकर उसे बड़ी शर्म लगी। मैं अजय (अजेय होने को) यज्ञ करूँ, ऐसा मन में निश्चय करके  ......

लंका काण्ड दोहा 76

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चौपाई :जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा। आहुति देत रुधिर अरु भैंसा॥कीन्ह कपिन्ह सब जग्य बिधंसा। जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा॥1॥ भावार्थ:- वानरों ने जाकर देखा कि वह बैठा हुआ खून और भैंसे की आहुति दे रहा है। वानरों ने सब यज्ञ विध्वंस कर दिया।   ......

लंका काण्ड दोहा 77

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चौपाई :बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लंका द्वार राखि पुनि आयो॥तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा। चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा॥1॥ भावार्थ:- हनुमान्‌जी ने उसको बिना ही परिश्रम के उठा लिया और लंका के दरवाजे पर रखकर वे लौट आए। उसका मरना सुनकर देवता   ......

लंका काण्ड दोहा 78

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चौपाई :तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन। आपुन मंद कथा सुभ पावन॥पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे॥1॥ भावार्थ:- रावण ने उनको ज्ञान का उपदेश किया। वह स्वयं तो नीच है, पर उसकी कथा (बातें) शुभ और पवित्र हैं। दूसरों को उपदेश देने   ......

लंका काण्ड दोहा 79

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चौपाई :चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा॥बिबिधि भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना॥1॥ भावार्थ:- राक्षसों की अपार सेना चली। चतुरंगिणी सेना की बहुत सी Uटुकडि़याँ हैं। अनेकों प्रकार के वाहन, रथ और सवारियाँ   ......

लंका काण्ड दोहा 80

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चौपाई :रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥ भावार्थ:- रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया (क  ......

लंका काण्ड दोहा 81

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चौपाई :सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना॥हमहू उमा रहे तेहिं संगा। देखत राम चरित रन रंगा॥1॥ भावार्थ:- ब्रह्मा आदि देवता और अनेकों सिद्ध तथा मुनि विमानों पर चढ़े हुए आकाश से युद्ध देख रहे हैं। (शिवजी कहते हैं-) हे  ......

लंका काण्ड दोहा 82

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चौपाई :धायउ परम क्रुद्ध दसकंधर। सन्मुख चले हूह दै बंदर॥गहि कर पादप उपल पहारा। डारेन्हि ता पर एकहिं बारा॥1॥ भावार्थ:- रावण अत्यंत क्रोधित होकर दौड़ा। वानर हुँकार करते हुए (लड़ने के लिए) उसके सामने चले। उन्होंने हाथों में वृक्ष, पत  ......

लंका काण्ड दोहा 83

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चौपाई :रे खल का मारसि कपि भालू। मोहि बिलोकु तोर मैं कालू॥खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती। आजु निपाति जुड़ावउँ छाती॥1॥ भावार्थ:- (लक्ष्मणजी ने पास जाकर कहा-) अरे दुष्ट! वानर भालुओं को क्या मार रहा है? मुझे देख, मैं तेरा काल हूँ। (रावण ने कहा  ......

लंका काण्ड दोहा 84

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चौपाई:जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा सँभारि बहुत रिस भरा॥मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सैल जनु बज्र प्रहारा॥1॥ भावार्थ:- हनुमान्‌जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे। हनुमान्‌जी ने रावण क  ......

लंका काण्ड दोहा 85

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चौपाई :इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई॥नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा॥1॥ भावार्थ:- यहाँ विभीषणजी ने सब खबर पाई और तुरंत जाकर श्री रघुनाथजी को कह सुनाई कि हे नाथ! रावण एक यज्ञ कर रहा है। उसके सिद्ध  ......

लंका काण्ड दोहा 86

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चौपाई :चलत होहिं अति असुभ भयंकर। बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर॥भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना॥1॥ भावार्थ:- चलते समय अत्यंत भयंकर अमंगल (अपशकुन) होने लगे। गीध उड़-उड़कर उसके सिरों पर बैठने लगे, किन्तु वह काल के वश   ......

लंका काण्ड दोहा 87

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चौपाई :एहीं बीच निसाचर अनी। कसमसात आई अति घनी॥देखि चले सन्मुख कपि भट्टा। प्रलयकाल के जनु घन घट्टा॥1॥ भावार्थ:- इसी बीच में निशाचरों की अत्यंत घनी सेना कसमसाती हुई (आपस में टकराती हुई) आई। उसे देखकर वानर योद्धा इस प्रकार (उसके) सामन  ......

लंका काण्ड दोहा 88

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चौपाई :मज्जहिं भूत पिसाच बेताला। प्रमथ महा झोटिंग कराला॥काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं॥1॥ भावार्थ:- भूत, पिशाच और बेताल, बड़े-बड़े झोंटों वाले महान्‌ भयंकर झोटिंग और प्रमथ (शिवगण) उस नदी में स्नान करते हैं। कौए और   ......

लंका काण्ड दोहा 89

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चौपाई :देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा। उपजा उर अति छोभ बिसेषा॥सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरष सहित मातलि लै आवा॥1॥ भावार्थ:- देवताओं ने प्रभु को पैदल (बिना सवारी के युद्ध करते) देखा, तो उनके हृदय में बड़ा भारी क्षोभ (दुःख) उत्पन्न हुआ।   ......

लंका काण्ड दोहा 90

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चौपाई :अस कहि रथ रघुनाथ चलावा। बिप्र चरन पंकज सिरु नावा॥तब लंकेस क्रोध उर छावा। गर्जत तर्जत सम्मुख धावा॥1॥ भावार्थ:- ऐसा कहकर श्री रघुनाथजी ने ब्राह्मणों के चरणकमलों में सिर नवाया और फिर रथ चलाया। तब रावण के हृदय में क्रोध छा ग  ......

लंका काण्ड दोहा 91

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चौपाई :कहि दुर्बचन क्रुद्ध दसकंधर। कुलिस समान लाग छाँड़ै सर॥॥नानाकार सिलीमुख धाए। दिसि अरु बिदिसि गगन महि छाए॥1॥ भावार्थ:- दुर्वचन कहकर रावण क्रुद्ध होकर वज्र के समान बाण छोड़ने लगा। अनेकों आकार के बाण दौड़े और दिशा, विदिशा त  ......

लंका काण्ड दोहा 92

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चौपाई :चले बान सपच्छ जनु उरगा। प्रथमहिं हतेउ सारथी तुरगा॥रथ बिभंजि हति केतु पताका। गर्जा अति अंतर बल थाका॥1॥ भावार्थ:- बाण ऐसे चले मानो पंख वाले सर्प उड़ रहे हों। उन्होंने पहले सारथी और घोड़ों को मार डाला। फिर रथ को चूर-चूर करके ध  ......

लंका काण्ड दोहा 93

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चौपाई :दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी। बिसरा मरन भई रिस गाढ़ी॥गर्जेउ मूढ़ महा अभिमानी। धायउ दसहु सरासन तानी॥1॥ भावार्थ:- सिरों की बाढ़ देखकर रावण को अपना मरण भूल गया और बड़ा गहरा क्रोध हुआ। वह महान्‌ अभिमानी मूर्ख गरजा और दसों धनु  ......

लंका काण्ड दोहा 94

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चौपाई :आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा॥तुरत बिभीषन पाछें मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला॥1॥ भावार्थ:- अत्यंत भयानक शक्ति को आती देख और यह विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना है, श्री रामजी ने तुरंत ही   ......

लंका काण्ड दोहा 95

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चौपाई :देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥रथ तुरंग सारथी निपाता। हृदय माझ तेहि मारेसि लाता॥1॥ भावार्थ:- विभीषण को बहुत ही थका हुआ देखकर हनुमान्‌जी पर्वत धारण किए हुए दौड़े। उन्होंने उस पर्वत से रावण के रथ, घोड़े औ  ......

लंका काण्ड दोहा 96

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चौपाई :अंतरधान भयउ छन एका। पुनि प्रगटे खल रूप अनेका॥रघुपति कटक भालु कपि जेते। जहँ तहँ प्रगट दसानन तेते॥1॥ भावार्थ:- क्षणभर के लिए वह अदृश्य हो गया। फिर उस दुष्ट ने अनेकों रूप प्रकट किए। श्री रघुनाथजी की सेना में जितने रीछ-वानर थ  ......

लंका काण्ड दोहा 97

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चौपाई :प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी॥रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे॥1॥ भावार्थ:- प्रभु ने क्षणभर में सब माया काट डाली। जैसे सूर्य के उदय होते ही अंधकार की राशि फट जाती है (नष्ट हो जाती ह  ......

लंका काण्ड दोहा 98

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चौपाई :सिर भुज बाढ़ि देखि रिपु केरी। भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी॥मरत न मूढ़ कटेहुँ भुज सीसा। धाए कोपि भालु भट कीसा॥1॥ भावार्थ:- शत्रु के सिर और भुजाओं की बढ़ती देखकर रीछ-वानरों को बहुत ही क्रोध हुआ। यह मूर्ख भुजाओं के और सिरों के कटने  ......

लंका काण्ड दोहा 99

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चौपाई :तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई॥सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी॥1॥ भावार्थ:- उसी रात त्रिजटा ने सीताजी के पास जाकर उन्हें सब कथा कह सुनाई। शत्रु के सिर और भुजाओं की बढ़ती का संवाद सुनक  ......

लंका काण्ड दोहा 100

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चौपाई :अस कहि बहुत भाँति समुझाई। पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई॥राम सुभाउ सुमिरि बैदेही। उपजी बिरह बिथा अति तेही॥1॥ भावार्थ:- ऐसा कहकर और सीताजी को बहुत प्रकार से समझाकर फिर त्रिजटा अपने घर चली गई। श्री रामचंद्रजी के स्वभाव का स्मर  ......

लंका काण्ड दोहा 101

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छंद :जब कीन्ह तेहिं पाषंड। भए प्रगट जंतु प्रचंड॥बेताल भूत पिसाच। कर धरें धनु नाराच॥1॥ भावार्थ:-जब उसने पाखंड (माया) रचा, तब भयंकर जीव प्रकट हो गए। बेताल, भूत और पिशाच हाथों में धनुष-बाण लिए प्रकट हुए!॥1॥ जोगिनि गहें करबाल। एक हाथ म  ......

लंका काण्ड दोहा 102

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चौपाई :काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई॥मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा। राम बिभीषन तन तब देखा॥1॥ भावार्थ:- काटते ही सिरों का समूह बढ़ जाता है, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है। शत्रु मरता नहीं और परिश्रम बहुत हुआ।   ......

लंका काण्ड दोहा 103

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चौपाई :सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा॥लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा॥1॥ भावार्थ:- एक बाण ने नाभि के अमृत कुंड को सोख लिया। दूसरे तीस बाण कोप करके उसके सिरों और भुजाओं में लगे। बाण सिरों और भुजाओं   ......

लंका काण्ड दोहा 104

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चौपाई :पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी॥जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आईं॥1॥ भावार्थ:- पति के सिर देखते ही मंदोदरी व्याकुल और मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़ी। स्त्रियाँ रोती हुई दौड़ीं और उस (मंद  ......

लंका काण्ड दोहा 105

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चौपाई :मंदोदरी बचन सुनि काना। सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना॥अज महेस नारद सनकादी। जे मुनिबर परमारथबादी॥1॥ भावार्थ:- मंदोदरी के वचन कानों में सुनकर देवता, मुनि और सिद्ध सभी ने सुख माना। ब्रह्मा, महादेव, नारद और सनकादि तथा और भी जो   ......

लंका काण्ड दोहा 106

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चौपाई :आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो। कृपासिंधु तब अनुज बोलायो॥तुम्ह कपीस अंगद नल नीला। जामवंत मारुति नयसीला॥1॥सब मिलि जाहु बिभीषन साथा। सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा॥पिता बचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ॥2॥ भावार्थ:- सब क्र  ......

लंका काण्ड दोहा 107

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चौपाई :पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना॥समाचार जानकिहि सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु॥1॥ भावार्थ:- फिर प्रभु ने हनुमान्‌जी को बुला लिया। भगवान्‌ ने कहा- तुम लंका जाओ। जानकी को सब समाचार सुनाओ और उसका कु  ......

लंका काण्ड दोहा 108

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चौपाई :अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता। देखौं नयन स्याम मृदु गाता॥तब हनुमान राम पहिं जाई। जनकसुता कै कुसल सुनाई॥1॥ भावार्थ:- हे तात! अब तुम वही उपाय करो, जिससे मैं इन नेत्रों से प्रभु के कोमल श्याम शरीर के दर्शन करूँ। तब श्री रामचंद्रजी  ......

लंका काण्ड दोहा 109

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चौपाई :प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता॥लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी॥1॥ भावार्थ:- प्रभु के वचनों को सिर चढ़ाकर मन, वचन और कर्म से पवित्र श्री सीताजी बोलीं- हे लक्ष्मण! तुम मेरे धर्म के नेगी (धर  ......

लंका काण्ड दोहा 110

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चौपाई :तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई॥आए देव सदा स्वारथी। बचन कहहिं जनु परमारथी॥1॥ भावार्थ:-तब श्री रघुनाथजी की आज्ञा पाकर इंद्र का सारथी मातलि चरणों में सिर नवाकर (रथ लेकर) चला गया। तदनन्तर सदा के स्वार्थी देवता   ......

लंका काण्ड दोहा 111

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छंद-जय राम सदा सुख धाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।।भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो॥1॥भावार्थ:-हे नित्य सुखधाम और (दु:खों को हरने वाले) हरि! हे धनुष-बाण धारण किए हुए रघुनाथजी! आपकी जय हो। हे प्रभो! आप भव (जन्म-मरण) रूपी हाथ  ......

लंका काण्ड दोहा 112

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तेहि अवसर दसरथ तहँ आए। तनय बिलोकि नयन जल छाए।।अनुज सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरबाद पिताँ तब दीन्हा।।1 ।।भावार्थ:-उसी समय दशरथजी वहाँ आए। पुत्र (श्रीरामजी) को देखकर उनके नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं का) जल छा गया। छोटे भाई लक्ष्मणजी स  ......

लंका काण्ड दोहा 113

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छंद –जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम।।धृत त्रोन बर सर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप।।1।।भावार्थ:-शोभा के धाम, शरणागत को विश्राम देने वाले, श्रेष्ठ तरकस, धनुष और बाण धारण किए हुए, प्रबल प्रतापी भुज दंडों वाले श्रीरामचंद्रजी की जय हो  ......

लंका काण्ड दोहा 114

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चौपाईसुन सुरपति कपि भालु हमारे। परे भूमि निसिचरन्हि जे मारे।।मम हित लागि तजे इन्ह प्राना। सकल जिआउ सुरेस सुजाना।।1।।भावार्थ:-हे देवराज! सुनो, हमारे वानर-भालू, जिन्हें निशाचरों ने मार डाला है, पृथ्वी पर पड़े हैं। इन्होंने मेरे हि  ......

लंका काण्ड दोहा 115

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छंदमामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।।मोह महा घन पटल प्रभंजन। संसय बिपिन अनल सुर रंजन।।1।।भावार्थ:-हे रघुकुल के स्वामी! सुंदर हाथों में श्रेष्ठ धनुष और सुंदर बाण धारण किए हुए आप मेरी रक्षा कीजिए। आप महामोहरूपी मेघ  ......

लंका काण्ड दोहा 116

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चौपाई :करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए॥नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी॥1॥भावार्थ:-जब शिवजी विनती करके चले गए, तब विभीषणजी प्रभु के पास आए और चरणों में सिर नवाकर कोमल वाणी से बोले- हे शार्गं धन  ......

लंका काण्ड दोहा 117

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चौपाई :सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के॥बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने॥1॥भावार्थ:-श्री रामचंद्रजी के वचन सुनते ही विभीषणजी ने हर्षित होकर कृपा के धाम श्री रामजी के चरण पकड़ लिए। सभी वानर-भालू हर्षि  ......

लंका काण्ड दोहा 118

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चौपाई :भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए॥नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा॥1॥भावार्थ:-भालुओं और वानरों ने कपड़े-गहने पाए और उन्हें पहन-पहनकर वे श्री रघुनाथजी के पास आए। अनेकों जातियों के वानरों क  ......

लंका काण्ड दोहा 119

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चौपाई :अतिसय प्रीति देखि रघुराई। लीन्हे सकल बिमान चढ़ाई॥मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो॥1॥भावार्थ:-श्री रघुनाथजी ने उनका अतिशय प्रेम देखकर सबको विमान पर चढ़ा लिया। तदनन्तर मन ही मन विप्रचरणों में सिर नवाक  ......

लंका काण्ड दोहा 120

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चौपाई :तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा॥कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥भावार्थ:-विमान शीघ्र ही वहाँ चला आया, जहाँ परम सुंदर दण्डकवन था और अगस्त्य आदि बहुत से मुनिराज रहते थे। श्री रामजी इन सबके स्थ  ......

लंका काण्ड दोहा 121

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चौपाई :प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। धरि बटु रूप अवधपुर जाई॥भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु॥1॥भावार्थ:-तदनन्तर प्रभु ने हनुमान्‌जी को समझाकर कहा- तुम ब्रह्मचारी का रूप धरकर अवधपुरी को जाओ। भरत को हमारी कुशल सुनान  ......