Home / Articles / Lanka Kand / लंका काण्ड दोहा 95

लंका काण्ड दोहा 95


चौपाई :

देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
रथ तुरंग सारथी निपाता। हृदय माझ तेहि मारेसि लाता॥1॥

 

भावार्थ:- विभीषण को बहुत ही थका हुआ देखकर हनुमान्‌जी पर्वत धारण किए हुए दौड़े। उन्होंने उस पर्वत से रावण के रथ, घोड़े और सारथी का संहार कर डाला और उसके सीने पर लात मारी॥1॥

 

ठाढ़ रहा अति कंपित गाता। गयउ बिभीषनु जहँ जनत्राता॥
पुनि रावन कपि हतेउ पचारी। चलेउ गगन कपि पूँछ पसारी॥2॥

 

भावार्थ:- रावण खड़ा रहा, पर उसका शरीर अत्यंत काँपने लगा। विभीषण वहाँ गए, जहाँ सेवकों के रक्षक श्री रामजी थे। फिर रावण ने ललकारकर हनुमान्‌जी को मारा। वे पूँछ फैलाकर आकाश में चले गए॥2॥

 

गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना। पुनि फिरि भिरेउ प्रबल हनुमाना॥
लरत अकास जुगल सम जोधा। एकहि एकु हनत करि क्रोधा॥3॥

 

भावार्थ:- रावण ने पूँछ पकड़ ली, हनुमान्‌जी उसको साथ लिए ऊपर उड़े। फिर लौटकर महाबलवान्‌ हनुमान्‌जी उससे भिड़ गए। दोनों समान योद्धा आकाश में लड़ते हुए एक-दूसरे को क्रोध करके मारने लगे॥3॥

 

सोहहिं नभ छल बल बहु करहीं। कज्जलगिरि सुमेरु जनु लरहीं॥
बुधि बल निसिचर परइ न पारयो। तब मारुतसुत प्रभु संभार्‌यो॥4॥

 

भावार्थ:- दोनों बहुत से छल-बल करते हुए आकाश में ऐसे शोभित हो रहे हैं मानो कज्जलगिरि और सुमेरु पर्वत लड़ रहे हों। जब बुद्धि और बल से राक्षस गिराए न गिरा तब मारुति श्री हनुमान्‌जी ने प्रभु को स्मरण किया॥4॥

 

छंद :

संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो।
महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुँ जय जय भन्यो॥
हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले।
रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचण्ड भुज बल दलमले॥

 

भावार्थ:- श्री रघुवीर का स्मरण करके धीर हनुमान्‌जी ने ललकारकर रावण को मारा। वे दोनों पृथ्वी पर गिरते और फिर उठकर लड़ते हैं, देवताओं ने दोनों की ‘जय-जय’ पुकारी। हनुमान्‌जी पर संकट देखकर वानर-भालू क्रोधातुर होकर दौड़े, किन्तु रण-मद-माते रावण ने सब योद्धाओं को अपनी प्रचण्ड भुजाओं के बल से कुचल और मसल डाला।

 

दोहा :

तब रघुबीर पचारे धाए कीस प्रचंड।
कपि बल प्रबल देखि तेहिं कीन्ह प्रगट पाषंड॥95॥

 

भावार्थ:- तब श्री रघुवीर के ललकारने पर प्रचण्ड वीर वानर दौड़े। वानरों के प्रबल दल को देखकर रावण ने माया प्रकट की॥95॥

This article is filed under: Lanka Kand

Next Articles

(1) लंका काण्ड दोहा 96
(2) लंका काण्ड दोहा 97
(3) लंका काण्ड दोहा 98
(4) लंका काण्ड दोहा 99
(5) लंका काण्ड दोहा 100

Comments

Login or register to add Comments.

No comment yet. Be the first to comment on this article.