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सुंदरकाण्ड दोहा 21

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चौपाई :कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥1॥भावार्थ:- लंकापति रावण ने कहा- रे वानर! तू कौन है? किसके बल पर तूने वन को उजाड़कर नष्ट कर डाला? क्या तूने कभी मुझे (मेरा ना

सुंदरकाण्ड दोहा 20

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चौपाई :ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥1॥भावार्थ:- उसने हनुमान्‌जी को ब्रह्मबाण मारा, (जिसके लगते ही वे वृक्ष से नीचे गिरपड़े), परंतु गिरते समय भी उन्होंने 

सुंदरकाण्ड दोहा 19

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चौपाई :सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥1॥भावार्थ:- पुत्र का वध सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने (अपने जेठे पुत्र) बलवान्‌ मेघनाद को भेजा। (उससे कहा कि-) हे पुत्र! मार

सुंदरकाण्ड दोहा 18

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चौपाई :चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥भावार्थ:- वे सीताजी को सिर नवाकर चले और बाग में घुस गए। फल खाए और वृक्षों को तोड़ने लगे। वहाँ बहुत से योद्धा रखवाले थे। उनम

सुंदरकाण्ड दोहा 17

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चौपाई :मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥1॥भावार्थ:- भक्ति, प्रताप, तेज और बल से सनी हुई हनुमान्‌जी की वाणी सुनकर सीताजी के मन में संतोष हुआ। उन्होंने श्री रामजी के प्

सुंदरकाण्ड दोहा 16

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चौपाई :जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई॥राम बान रबि उएँ जानकी। तम बरुथ कहँ जातुधान की॥1॥भावार्थ:- श्री रामचंद्रजी ने यदि खबर पाई होती तो वे बिलंब न करते। हे जानकीजी! रामबाण रूपी सूर्य के उदय होने पर राक्षसों की सेन

सुंदरकाण्ड दोहा 15

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चौपाई :कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू॥1॥भावार्थ:- (हनुमान्‌जी बोले-) श्री रामचंद्रजी ने कहा है कि हे सीते! तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं

सुंदरकाण्ड दोहा 14

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चौपाई :हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥1॥भावार्थ:- भगवान का जन (सेवक) जानकर अत्यंत गाढ़ी प्रीति हो गई। नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं का) जल भर आया और शरीर अत्यंत पुल