सुंदरकाण्ड दोहा 10
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चौपाई :सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥1॥भावार्थ:- सीता! तूने मेरा अपनाम किया है। मैं तेरा सिर इस कठोर कृपाण से काट डालूँगा। नहीं तो (अब भी) जल्दी मेरी बात मान ले।