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सुंदरकाण्ड दोहा 44

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चौपाई :कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू॥सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥1॥भावार्थ:- जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहींत्यागता। जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता

सुंदरकाण्ड दोहा 43

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चौपाई :ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंदु एहिं पारा॥कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥1॥भावार्थ:- इस प्रकार प्रेमसहित विचार करते हुए वे शीघ्र ही समुद्र के इस पार (जिधर श्री रामचंद्रजी की सेना थी) आ गए। वानर

सुंदरकाण्ड दोहा 42

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चौपाई :अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥भावार्थ:- ऐसा कहकर विभीषणजी ज्यों ही चले, त्यों ही सब राक्षस आयुहीन हो गए। (उनकी मृत्यु निश्चित हो गई)। (शिवजी कहते हैं-) हे भवानी! स

सुंदरकाण्ड दोहा 41

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चौपाई :बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी॥सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहिं निकट मृत्यु अब आई॥1॥भावार्थ:- विभीषण ने पंडितों, पुराणों और वेदों द्वारा सम्मत (अनुमोदित) वाणी से नीति बखानकर कही। पर उसे सुनते ही रावण क्रोधि

सुंदरकाण्ड दोहा 40

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चौपाई :माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥1॥भावार्थ:- माल्यवान्‌ नाम का एक बहुत ही बुद्धिमान मंत्री था। उसने उन (विभीषण) के वचन सुनकर बहुत सुख माना (और कहा-) हे तात! आप

सुंदरकाण्ड दोहा 39

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चौपाई :तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥भावार्थ:- हे तात! राम मनुष्यों के ही राजा नहीं हैं। वे समस्त लोकों के स्वामी और काल के भी काल हैं। वे (संपूर्ण ऐश्वर्य, यश, श्र

सुंदरकाण्ड दोहा 38

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चौपाई :सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥भावार्थ:- रावण के लिए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी है। मंत्री उसे सुना-सुनाकर (मुँह पर) स्तुति करते हैं। (इसी समय) अवसर जानकर 

सुंदरकाण्ड दोहा 37

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चौपाई :श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा॥1॥भावार्थ:- मूर्ख और जगत प्रसिद्ध अभिमानी रावण कानों से उसकी वाणी सुनकर खूब हँसा (और बोला-) स्त्रियों का स्वभाव सचमुच ही बहुत