सुंदरकाण्ड दोहा 08
Filed under:
Sunderkand
चौपाई :जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥1॥भावार्थ:- जो जानते हुए भी ऐसे स्वामी (श्री रघुनाथजी) को भुलाकर (विषयों के पीछे) भटकते फिरते हैं, वे दुःखी क्यों